कविता, आज खाने में क्या बना रही हो- बिंदु जैन, लखनऊ-उत्तरप्रदेश
आज खाने में क्या बना रही हो
पूछने वाले बच्चे बस
मैगी ही खाते हैं आजकल….
गरमागरम फूली रोटी खाने वाले..
सिर्फ खाते दाल और चावल …
टिफिन में वैरायटी वाले…
नाश्ते में लेते दूध और सीरियल
कहने में उच्च सोसायटी वाले
रेडीमेड होकर रहते नही रियल
कुछ अच्छा सा बनाओ न
ढाबे जैसा तड़का लगाओ न
कहने वाले बच्चे गुड
ले आते बाहर से जंक फूड
यह पिल्लों मेरा, ये मेरी है जगह
लड़ते झगड़ते बिखेरते थे स्माइल
अब लड़ते नही बच्चे सो जाते
देर रात लेकर हाथों में मोबाइल
अपना बैट..अपना गिटार
अपनी फुटबॉल रैकेट टूटे तार
छोड़कर साइकल अपनी कहीं
घर से दूर जाते संग दोस्त यार
छोटे छोटे प्यारे प्यारे से बच्चे
ज्ञान में बेशुमार कब हो जाते हैं…
पता ही नहीं चल पाता कम उम्र में
इतने समझदार कब हो जाते है..
संस्कार मार्ग में चलने वाले बच्चे
पहले बड़े सयाने कहलाते
अब मोबाइल बैशाखी के सहारे
अपने पैरों पर खड़े हो जाते
मन में जाने उनके रहते कौन
आजके बच्चे जाने क्यों रहते मौन
उंगली पकड़ कर चलने वाले
माता- पिता के सांचे में ढलने वाले
हो गये एकांतवासी बेहद सेल्फीज़
हर बार गलती करके कहते प्लीज
माना कि ये मोबाइल का है असर बच्चे तो माँ बाप के होते जिगर
देकर सेल्फी और स्क्रीनशॉट
निकल जाते बहुत दूर सैरसपाट
कहीं दिल से न हों दूर सुनके डांट
हम शामिल हो जाते हैं वर्तमान में
बच्चों की कृत्रिम खुशी ,मुस्कान में
【कवयित्री बिंदु जैन ‘रेडियो जॉकी’ से हैं, ‘छत्तीसगढ़ आसपास वेब पोर्टल’ के लिए विशेष रूप से भेजी गई रचना.】