कविता, निखरी चंदा की छबि आँगन में- डॉ. सुभद्रा खुराना भोपाल-मध्यप्रदेश
4 years ago
354
0
—निखरीचंदाकीछवि आँगनमें—
निखरी चंदा की छवि आँगन में,
सुरभि साँस में, प्रीत नयन में।
कानों में झंकृत पग-ध्वनि-स्वर,
मधुर गन्ध भर उठता अन्तर,
स्तुति हित शत-शत स्तोत्र संवरते,
पूजा की वेला क्षण-क्षण में।
पन्थ बना मंजिल जाता है,
कुछ खोया-सा मिल जाता है,
महफ़िल-सा बनता सूनापन,
सुन्दर लगता चाँद गगन में।
बौराई वातास, ठिठोली-
करने लगती आँख-मिचौली,
अर्पण में आकर्षण कितना,
शोखी शरमाये दर्पण में।
निखरी चंदा की छवि आँगन में,