गीत- शुचि ‘भवि’, भिलाई-छत्तीसगढ़
4 years ago
249
0
प्रिये तुम्हीं से मिलकर मैंने
जीवन को अनुपम बोला था
नज़रों ने नज़रों को देखा
दिल तक कुछ संदेशे आये
इन संदेशों की आमद से
अधर गले मिल कर मुस्काए
सच कहती हूँ तुम्हें देखकर
दिल का दरवाज़ा खोला था
जीवन को …..
रात चाँदनी छिटकी मुझपर
जब जब तुमने मुझे पुकारा
मैनें भी तो जग से छुपकर
मन-मन्दिर में तुम्हें उतारा
तुमने आलिंगन दे मुझको
प्रेम तराज़ू में तोला था
जीवन को ….
बंजर धरती पर मेरी यूँ
बूँद प्रेम की बरसाना
जानबूझ कर फिर ये कहना
‘भवि’ मुझे तुम बिसराना
मन की आँखों ने देखा है
झूठ संग जो सच घोला था
जीवन को …..