कविता : ‘ स्वयं सिध्दा ‘ -डॉ.मीता अग्रवाल ‘ मधुर ‘ [रायपुर छत्तीसगढ़]
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स्वयं सिध्दा
घर-बाहर
ज्ञान-विज्ञान
कला कौशल
अंतरिक्ष
सभी हदों को
केवल जाना ही नहीं
आरोह अवरोह मध्य
जूझती
विजय-तिलक की हकदार
शक्ति की साधक
स्त्रीत्व का मान बढ़ाती
बदलते परिवेश
झंझावात झकोरती
चीरती बढ़ती
उलाहना सुनती,
दक्षता के परचम लहराती
इतिहास गढ़ती
स्त्री -ही-तो है,
स्वयं सिद्धा।
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