कविता, ऐसे मनाएं दीवाली -ओमप्रकाश साहू ‘अंकुर’, राजनांदगांव-छत्तीसगढ़
ऐसे मनाएं दीवाली
सूरज घोले ऐसी लाली,
न आएं कभी रात काली.
न हो किसी को गम,
सबके जीवन में हो खुशहाली.
आओ ऐसे मनाएं दीवाली…….
संस्कृति को रखे संजो कर,
सजा ले आरती की थाली.
न रहें वातावरण पतझड़ सम,
चहुं ओर छाई हो हरियाली.
आओ ऐसे मनाएं दीवाली…….
न उजाड़े सपनों के बाग को,
ऐसे हो हमारे माली.
हो भाई- चारा का माहौल,
न देवें एक दूसरे को गाली.
आओ ऐसे मनाएं दीवाली……
न सोएं कोई भूखे पेट,
हर किसी को मिलें भर पेट थाली.
गरीब के घर में भी जले दीयें,
न हो उनकी जेब खाली.
आओ ऐसे मनाएं दीवाली……
सलाम करें अन्नदाताओं और वीर जवानों को,
जिनके कारण है हमारी जिंदगी में खुशहाली.
बुजुर्ग न पड़े रहें उदास किसी कोने में,
उनकी भी भर देवें खुशियों की झोली.
आओं ऐसे मनाएं दीवाली…….
*कवि ओमप्रकाश साहू ‘अंकुर’ मंचों में लोकप्रिय हैं, कई साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हैं,
‘छत्तीसगढ़ आसपास’ के लिए उनकी ये पहली रचना है*