बाल कविता, उठो गुनगुन उठो-उठो – त्र्यम्बक राव साटकर “अम्बर
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उठो गुनगुन उठो-उठो ।
हुआ सबेरा उठो-उठो ।
चुनमुन देखो उठ गया ।
बिस्तर छोड़ बैठ गया ।
तुम भी बिस्तर छोड़ो ।
आँखें खोलो उठो-उठो ।
उठो गुनगुन उठो-उठो ।
स्कूल जल्दी जाना है ।
अब ना कोई बहाना है ।
उठकर अब बैठ जाओ ।
आँखें मीचो उठो-उठो ।
उठो गुनगुन उठो-उठो ।
नहीं है बिल्कुल अच्छा,
देर सबेरे सोकर उठना ।
जागो – जागो नींद से,
सूरज ऊगा टूटा सपना ।
आँखें मलकर उठो-उठो ।
उठो गुनगुन उठो-उठो ।
लेखक संपर्क-
94792 67087