ददरिया -डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’, कोरबा-छत्तीसगढ़
● आबे बिहनिया खवाहूँ बासी
मोर मन के मँजूर तँय बारामासी
● ए फूलबासन जोहार ले ले
पिरीत दे दे अपन अउ पियार ले ले
● नाचत रइथे आँखी के पुतरी
बाँध लेही मुहचारी मया के सुँतरी
● रहि रहि मोला आवत हे हाँसी
परान लेही टूरा के जूड़ खाँसी
● पटौंहा मा धरे हावे गुढ़वा
जिनगी कइसे कटही धनी हे बुढ़वा
● घिसे गुड़ाखू अउ खाय मुरकू
तोर भाटो के बहिनी हावे टरकू
● चूँदी मा गाथे हावय फुँदरी
मोर जी ला जरावत हे सोन लुँदरी
● अब्बड़ रिसाथे हावय रोनही
अपन बस मा करे हे मोला टोनही
● नंदिया तीर मा भुलाय मुँदरी
घेरी बेरी लजाय टूरी बेंदरी
● सुघ्घर चेहरा हे रातरानी
रोज़ जाथे अकारन भरे ला पानी
● मोर बर लाबे तँय रमकेरिया
मेंहूँ लाय हँव तोर बर एकतरिया
● नोनी के दाई के हदरासी
रोक पावँव नइ मोला आवय हाँसी
● आड़ मा ठाढ़े हावय बोकरी
सोझ झिन आबे मिलही सासडोकरी
● मोला मोहा डारे हटियारिन
बन जाते कोनोदिन मोर बनिहारिन
●कवि संपर्क-
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