कविता, कुटुमसर की मछलियां- उर्मिला शुक्ल, रायपुर-छत्तीसगढ़
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बस्तर के कुटुमसर
गुफ़ा में तैरती अंधी मछलियां
सैलानियों का कुतुहल जगाती
उनका मन बहलाती मछलियां
हो गयी हैं अब,बहुत व्वायकुल
क्या वे आई हैं धरती पर,
सिर्फ मन बहलाने ?
मात्र यही है, उनके जीवन का लक्ष्य ?
कि अपनी पीड़ा को भूल,
बहलाती रहें उनका मन,
जिनके लिए उनका जीवन है,
सिर्फ़ एक तमाशा ?
मछलियों ने सूंघ ली है उनकी मंशा.
चिन्ह लिए हैं उनके इरादे.
कहीं बाजार में,
न बदल जाए उनका जंगल,
सोचकर व्वायकुल हैं,
कुटुमसर की मछलियां
【 छत्तीसगढ़ औऱ हिन्दी दोनों ही भाषाओं के लेखन में सिद्धहस्त उर्मिला शुक्ल की ‘कुटुमसर की मछलियाँ’ पढ़ें औऱ प्रतिक्रिया से अवगत करायें -संपादक
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