विश्व पुरुष दिवस पर विशेष रचना- शुचि ‘भवि’
सुनो
तुम पुरुष हो
हर दिवस ही तुम्हारा है
फिर क्यों दूँ भला बधाई तुम्हें
“विश्व पुरुष दिवस की”
क्या युगों के बदलाव ने
कभी लेशमात्र भी
बदला है तुम्हें?
क्या अब तुम नारी को देवी मान ,नौ और नौ
अट्ठारह दिवस से अधिक पूजते हो?
क्या तुम्हें उसकी देह से इतर
कभी उसकी भावनाएँ दिखती हैं?
क्या अपनी पत्नी,बहन और माँ के अतिरिक्त
हर नारी पूजनीय लगती है?
मगर फिर भी
हम आज भी
पूजती हैं
तुम्हारी ‘अना’ को
कि वो बहुत बलशाली है
आहत होती है जब-जब
तब-तब किसी भी हद तक
गिर जाती है
और हमने
उतना गिरना
कभी सीखा ही नहीं!!
इसलिए तो
ईश्वर ने
सृष्टि का दायित्व
हमें दिया है
और तुम
इस नाते
हमेशा ही
ऊँचे होने पर भी
झुकते हो
और हम
तुम्हारी हर ग़लतियाँ
माफ़ कर
तुम्हें पुनः
उन ऊँचाइयों तक
उठातीं हैं,,
【 ●दोहा,कुण्डलिया,सवैया, ग़ज़ल, गीत,मुक्त छंद,लघुकथा, हाइकू,माहिया,क्षणिका, पिरामिड में सिद्धहस्त कवयित्री शुची ‘भवि’ की आज़ प्रकाशित पुरुष दिवस पर कविता पर अपनी राय से अवगत करायें,-संपादक
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