कविता : पूनम पाठक बदायूं
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आदिवासियों को विकसित बनाएं
– पूनम पाठक बदायूं
[ इस्लामनगर उत्तरप्रदेश ]
आदिवासियों को विकसित बनाएं =
आदिवासी जंगल के हैं संरक्षक
कब तक खुद को ऐसे सताओगे।
शिव हैँ आदिवासियों के देवता
देव शिव भी तो आदिवासी थे,
आदिवासियों के नायक बिरसा
अंग्रेजों से वे लड़ने वाले थे।।
आदिवासी….
जंगल गिरी सुदूर गांवों में रहना
पालन करते अपनी परंपरा हैँ,
रहन-सहन खान-पान में राज छिपा
जड़ी बूटियां की समझ भी पता है।।
आदिवासी……
सामुदायिक भलाई को जानना
एक दूसरे का करते सहयोग हैँ,
धन बटोरना नहीं उनको पसंद
क्यों गरीब अनपढ़ वे कुपोषित हैं।।
आदिवासी……
संस्कृति जनरीति ब्रह्म ज्ञान विश्वास आदिवासियों का अपना है धर्म,
सदा सर रहे हैं ये प्रकृति पूजक
हिंदू ईसाई इस्लाम धर्म हुए हैँ ।।
आदिवासी……..
रोजी-रोटी में दिखे समरूपता
ईश्वर की है इन पर विशेष कृपा,
कितनी एकता आदिवासियों में
अपनी ही संस्कृति में ये रहते हैँ।।
आदिवासी…..
पशुपालन है इनको बहुत ही प्रिय
हैँ किसान और हैं सभी मजदूर,
आदिवासियों का नजरिया वैश्विक
जितनी होती जरूरत धन रखते ।।
आदिवासी……..
आत्माओं की करते हैं सभी पूजा
पूर्वजों गांव प्रकृति की आत्माएं,
पहाड़ आत्माएं नदी आत्माएं
आदिवासी विचार प्राकृतिक हैँ।।
आदिवासी…….
वनस्पतियों जीवों का करें संरक्षण
जीव जंतु कृषि मेहनत प्राकृतिक,
हे आदिवासियों तुम प्रकृति पूजक
सभी पवित्र उपवन तुमने बचाए ।।
आदिवासी……
आत्म सम्मान से सभी तुम जीते
तुम्हारे लिए कानून नहीं होते,
तुमने बनाई है खुद परंपराएं
परंपराओं में तुम हो सब चलते।।
आदिवासी…….
पावन धरती है मां यह तुम्हारी
सत्य की है महिमा सारी न्यारी,
कोई शक्ति हो परिवर्तन लाए
आदिवासियों को विकसित बनाएं।।
आदिवासी…..
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