कविता, कैसे भूलूँ ? -अंशुमन राय, इलाहाबाद-उत्तरप्रदेश
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कैसे भूलूँ? वह रात को टिमटिमाते तारे,
जो आजकल शहरों में नहीं दिखते।
कैसे भूलूँ? वह चांदनी रात और वह गोल चाँद,
जो लाख कोशिश करने पर भी हमारे दरीबा से नहीं दिखते।
कैसे भूलूँ?वह बिना मकसद के घंटो साईकिल चलाना,
जो लाख चाहने के बाद भी आज नहीं कर सकता।
कैसे भूलूँ?वह बिजली गुल हो जाने पर ‘हो’करके चिल्लाना,
जो घर घर इन्वर्टर लगने के बाद अब सुनाई नहीं देता।
कैसे भूलूँ?
कैसे भूलूँ?वह घंटी बजने पर स्कूल से दौड़कर बहार आना।
कैसे भूलूँ?वह तीन सवारी बैठाकर साईकिल चलाना।
कैसे भूलूँ?वह दोस्तों के साथ चौक जाना।
कैसे भूलूँ?वह बिन बात पर घंटो तक हंसना।
कैसे भूलूँ?वह चापाकल से बेरोकटोक पानी पीना।
कैसे भूलूँ?वह गर्मी की दुपहरी में क्रिकेट खेलना।
कैसे भूलूँ?वह गन्दी नाली से गेंद उठाना।
कैसे भूलूँ? वह शटर वाली टीवी में मोगली देखना।
कैसे भूलूँ? कैसे भूलूँ?
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