






देव उठनी, प्रबोधिनी एकादशी, तुलसी विवाह पर विशेष कविता -आलोक शर्मा
जागेंगे आज जगतपति
जागेंगे आज जगन्नाथ
उठेंगे योगनिद्रा से
जगत के पालनहार
सोयी नहीं है सबकी प्रार्थना
जागती रही है मनोकामना
विनय के , हमारे अनुनय के
हे जगतश्रोता
हमें थामना
जीवन में जागरण का
अर्थ यही हो जाता है
जब तक जागती है चेतना
मन कहां सो पाता है
अक्षय हो ये जागृत साधना
हे मनहर,हे हरिहर
हमें थामना
कलिकाल की निष्ठुरता हम-
भोग रहे हैं
मृतप्राय संवेदना के शोक रहें हैं
गजेन्द्र चीत्कार गंभीर हो
या दुश्सासी हाथों में
द्रौपदी का चीर हो
पुकारती वेदना को अभय परोक्ष करो
हे गोपाल हे गोविंद
संबल विश्वास को मोक्ष करो
भक्ति की हो प्रबल भावना
हे दामोदर हे विश्वेश्वर
हमें थामना”
【 कवि आलोक शर्मा छत्तीसगढ़ से देश के लोकप्रिय मंचीय कवि हैं. आलोक शर्मा हास्य रचनाओं के लिये जाने जाते हैं त्यौहार विशेष इस रचना को पढ़ें औऱ अपनी प्रतिक्रिया से अवगत करायें
-संपादक
कवि संपर्क-
99932 40084
chhattisgarhaaspaas
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