गीत -शुचि ‘भवि’
बिन सूरज के जैसा होगा
रोज़ यहाँ पर दिन
मेरा भी जीवन वैसा ही
मीत तुम्हारे बिन
चिड़ियों का कलरव है ग़ायब
मन ठहरा-ठहरा
फ़लक की लालिमा पे देखो
यादों का पहरा
मस्तानी वो चाल गुम हुई
गिलहरी की आज
तुम बिन नयना सावन भादो
मौन हर आवाज़
आस तुम्हारे आने की भर
देती थी जीवन
बाट जोहते देखो हरपल
हुई मैं बंजारिन
मीत तुम्हारे बिन
पुष्प सभी तुम सँग थे खिलते
अब सूनी बगिया
मुरझाई हूँ मैं भी आकर
देख तो लो पिया
मन की तितली उड़ना भूली
भौरे हैं उदास
सच में साजन तुमसे ही था
जीवन में उजास
सोचा था तुम आ जाओगे
बन पूर्ण आनन्द
बेरुख़ी का लेकिन तुम तो
लेकर आए पिन
मीत तुम्हारे बिन
सब्ज़ी में क्यों महक न मिलती
रोटी अब टेढ़ी
भरते में बैंगन ने देखो
आँख है तरेरी
माथे की बिंदिया भी गुमसुम
कंगन हुए मौन
बतला दो इतना अब हमको
हो हमारे कौन
‘भवि’ की बसती साँस तुम्हीं में
क्यों पिया अंजान
कम होती इन साँसों को भी
साजन लेते गिन
मीत तुम्हारे बिन
【 छत्तीसगढ़ की कवित्रियों में एक नाम शुचि ‘भवि’ का भी है, हाल ही में उनकी ॐ दोहा चालीसा संग्रह ‘मेरे मन का गीत’ छप कर आयी है.
‘छत्तीसगढ़ आसपास’ में उनकी कविता/गीत नियमित छप रही है.
आज़ ‘छत्तीसगढ़ आसपास वेब पोर्टल’ में एक गीत प्रकाशित हो रही है, अपनी प्रतिक्रिया से अवगत करायें.
-संपादक
कवयित्री संपर्क-
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