लघुकथा, मीठी बोली- डॉ. सोनाली चक्रवर्ती
-“अम्मा जी”
बहू की आवाज कानों में पड़ी तो शांति देवी ने जल्दी से आंखें पोंछ ली और अपने कपड़ों को पलंग पर यूं ही इधर से उधर करने लगी।
दो महीने हुए थे उन्हें छोटे बेटे के घर आए हुए।
चार सालों तक बड़े बेटे के घर पर रही ।वहां की बहुत सी कड़वी यादों से आंखें जब तब बेतरह भर आती है।
यहां आकर देखने पर पता चला छोटी बहू ने उनका कमरा जस का तस सजा के रखा हुआ है ।यही नहीं और कई सुविधाएं कमरे में जुटा दी है ।
मसलन जब घर बन रहा था तब उन्होंने ज़िद कर अपना टॉयलेट इंडियन ही रखा था क्योंकि उनको वेस्टर्न से घिन आती थी लेकिन घुटनों के ऑपरेशन के कारण अब वेस्टर्न टॉयलेट ही उनका एकमात्र सहायक था।
छोटे बेटे के घर आकर देखा बहू ने पुराना टॉयलेट तुड़वा कर वेस्टर्न बनवा दिया है।
बहु धड़धड़ाते हुए कमरे में आकर बोली -“अम्मा जी सुबह से कपड़ों को क्यों उठा पटक कर रही हैं? बताइए कौन सी साड़ी पहननी है”
शांति देवी धीरे से बोली-
” बेटा मुझे लेकर कहां घिसटती रहोगी ?”
बहु तीखी आवाज में बोली
-” अम्मा जी सोसाइटी का दीवाली मिलन समारोह है। हर एक घर से सबको वहां शिरकत करनी है ।आप क्यों नहीं जाएंगी.. मुझे कारण बताएंगी-”
शांति देवी हल्की आवाज में बोली-” बेटा 80 साल की उम्र में मै ठीक से चल भी नहीं पाती हूं। तुम में से किसी को हाथ पकड़ कर मुझे धीरे-धीरे चलाना पड़ता है ।मेरी वजह से तुम्हें भी धीरे चलना पड़ता है। उठने बैठने में सहायता लगती है फिर भी मुझे हर जगह ले जाने की जिद क्यों करती हो। मैं कमरे में आराम से तो हूं ”
इतने में पेपर पढ़ता हुआ बेटा कमरे से आवाज सुनकर आकर बोला-” अरे रहने दो ना अम्मा नहीं जाना चाह रही है तो ”
बहू ने पति को आंखें तरेर कर देखा और कहा-” तुमसे किसने कहा बीच में बोलो”
और उसके बाद अम्मा जी की तरफ देख कर बोली
-” अम्मा जी जब आपके बेटे छोटे थे, छोटे छोटे पैरों से तेज नहीं चल सकते थे तब आप उनके साथ धीरे धीरे चलती थी ना या उनको घर में छोड़कर जाती थी? अब हमारी बारी है ।आपके साथ धीरे-धीरे हम चलेंगे। परिवार ऐसे ही चलता है सभी को सभी की जरूरत पड़ती है। आप साड़ी पहन लिजिए घर में बहुत काम पड़े हैं मुझे और गुस्सा मत दिलाइए।”
यह कहकर तेज कदमों से बहू वहां से चली गई।
बेटा धीरे से मां को कहता है -“अम्मा 24 सालों में बहू को मीठा बोलना नहीं सिखा पाई और आजकल तो और इसकी जबान पर कांटे उग रखे हैं”
इसपर अम्मा जी ने आंखें पूछते हुए बेटे से कहा -“मीठा बोलने वाले बहुत देख लिए बेटे ।उसके दिल को देखो और चिड़चिड़ाती वह इसलिए है कि उसकी उम्र कभी मेरी भी थी। इस उम्र में शरीर में इतने अनचाहे बदलाव होते हैं कि खुद को भी समझ में नहीं आता ।इस समय हम सब का फर्ज है कि उसके चिल्लाने पर ध्यान ना दे कर उसकी भावनाओं को समझें” और बेटे को डपट कर बोली-” अब तू जा अपना काम कर”
जोर से बहु को संबोधित कर जोर से कहने लगी “माताश्री यह भी बताती जा की कौन सी साड़ी पहनूं नहीं तो फिर से किच किच करेगी ”
बेटा मूछों में मुस्कुराते हुए वापस मुड़ गया।
【 *’छत्तीसगढ़ आसपास’ संपादकीय बोर्ड ऑफ डायरेक्टर की सदस्य डॉ. सोनाली चक्रवर्ती,
ए मिशन विद ए विज़न की जो विवाहित महिलाओं का सांस्कृतिक समूह है-‘स्वयंसिद्धा’ की भी डायरेक्टर हैं.*
-संपादक
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