





रचना आसपास : तारक नाथ चौधुरी

स्नेह-सन्धान
[ सत्य घटना-अवलंबित ]
– तारक नाथ चौधुरी
[ चरोदा, भिलाई जिला-दुर्ग, छत्तीसगढ़ ]
विगत दुपहरी दृश्य देख इक
मैं अत्यंत चकित हुआ ।
विवश-विपन्न नारी- व्यथा सुन
हृदय,अतिशय ही व्यथित हुआ।।
शर्मा जी के होटल में खाने
आया था हर दिन की तरह।
भीड़ बहुत थी जगह की तुलना
समायोजित था किसी तरह।।
इतने में आ खडी़ हुई वहाँ
मध्यवयसी सुंदर नारी।
बिखरे केश थे शुष्क अधर,
लगती थी बडी़ वो बेचारी।।
पोंछ रही थी बार-बार वो
आँचल से अपना चेहरा।
बीच-बीच छुपाती जाती,
कुर्ती का सीवन उधडा।।
भूख पेट की दिखती थी,
आँखों की दो पुतलियों में।
क्षुधा-अगन प्रचंड थी,
उसकी अन्न-शून्य अँतडि़यों में।।
मुख से कुछ न कहती थी, बस हाथ उठाती जाती।
कोई न उन्मुख होता था,
किससे वो बात बताती?
इतने में इक भद्र वृद्ध
आ खडे हुए उसके सम्मुख
बेटी संबोधन कर वे पूछे
क्या तुम भी खाओगी कुछ?
बाबूजी मुझको केवल ही
चावल-दाल ही दीजिए।
पैसे कम हैं इसीलिए मुझे
और न कुछ भी दीजिए।।
पिताप्रतिम होटल मालिक ने
स्नेह से उसको बैठाया।
विविध व्यंजनों वाली धाली
मेज पर उसकी दे आया।।
चौंक पडी़ वह थाल देखकर,
हाथों से दूर उसे सरकाया।
कहा-नहीं है थाल ये मेरी
आपने भूलवश ले आया।।
बात उसकी सुन मालिक उससे
खाने का अनुरोध किया।
स्वाभिमानी नारी ने किंतु
देर तलक संकोच किया।।
उसकी दुविधा समझ पुनः
बोले-“न घबराओ बेटी।
पैसे उतने ही लूँगा जो
दाल-भात के लिए देती।”
कभी चूक नहीं होती जिनसे
भूल उनसे क्यों हुई भला
या फिर कोई दमित स्मृति ने
शर्मा जी के मन को छला?
देख रहा था मैं विस्मित हो
एक नये शर्मा जी को।
पहले कभी नहीं देखा था,
भावुक,कोमल इतना उनको।।
उत्सुकतावश पूछा जब मैं
इस उदारता का कारण।
बोले इस हानि से हुआ है
लाभ मुझे असाधारण।।
समझ न पाया मैं बिल्कुल भी
शर्मा जी का दार्शनिक जवाब।
नुकसान उठाकर कैसे किसी को
हो सकता है अतुलित लाभ?
पास बिठाया और पीठ पर
• संपर्क-
• 83494 08210
chhattisgarhaaspaas
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