विश्व कविता दिवस पर विशेष गद्य-पद्य रचना : विद्या गुप्ता
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साहित्य और साहित्यकार का दायित्व
– विद्या गुप्ता
[ दुर्ग : छत्तीसगढ़ ]
साहित्यकार तब ही सफल माना जा सकता है जब वह समाज की विसंगतियां को कोई दिशा दिखला सके। कहते हैं साहित्य समाज का दर्पण है…. दर्पण तो केवल प्रतिबिंब दिखलाता है, लेकिन साहित्यकार का दायित्व यहां तक पूर्ण नहीं हो पाता उसे तो उसे प्रतिबिंब अर्थात समाज की सूरत को संवारना भी होता है कलम का यही दायित्व है कि, कहां पर समाज विकृतियों से भर रहा है, और कैसे उस विकृति से हम दूर करने में सहायक हो सकते हैं या संवेदना सहित प्रस्तुत कर सकते हैं ।
एक बात और आज लिखने के लिए अधिकांश व्यक्ति तत्पर है लेकिन क्या लिखा जाना चाहिए ,कैसे लिखा जाना चाहिए, इस पर भी हमें गौर करना होगा…. साहित्य सृजन केवल शब्दों से नहीं होता स्थितियों को जी कर उसे पूरी संवेदना से लिखना होता है। शब्दकोश में लाखों शब्द है लेकिन वह कविता नहीं हो सकते….
कविता होने के लिए शब्दों को प्राणवान करना होगा, शब्दों में प्राण भरकर संवेदना को परोसने होगा तब जाकर रचना मुकम्मल मानी जाएगी, जो सीधा पाठक के मन और विचारों पर असर कर सके, समाज में कुछ बदलाव ला सके। इसी विषय पर मेरी एक रचना है शीर्षक है
शर्त
रोको,
शब्दकोश से
कविता की ओर दौड़ते शब्दों को
शर्त है, शब्दों को जिंदा करने के बाद ही
खड़ा किया जाए
कविता की पंक्ति में, ताकि साबित हो
शब्द कुछ देर ठहरे थे संवेदना के पास
वेदना में भीगते हुए….!!
शब्दों में हो
एक आकाश
जो ढांक सके,
नंगे तन की सिहरन को कंबल की तरह
शब्दों में हो
एक सागर जो
भर सके उनकी अंजलि जिनके होंठ प्यासे हो….
शब्दों में प्राण हो,
जो कर सके
सांसों की वसीयत
जिंदा मुर्दों के नाम
तो आओ
कुछ ऐसा लिखा जाए कुछ ऐसा कहा जाए
कि,कविता …..
कर्ण सी दानी हो जाए
और कोई खाली न जाए
कविता के द्वारा से
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