कविता, कब-तक यों चलते जायेंगे ? – डॉ.सुभद्रा खुराना, भोपाल-मध्यप्रदेश
4 years ago
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जीवन गतिशील है
गति ही प्रगति देती है
आशावान बने रहे
कब तक यों चलते जायेंगे ?
उभरेंगे चाँदी के तारक
सिहरेंगे, ढलते जायेंगे।
कब तक यों चलते जायेंगे ?
तन की सीम और होती है,
मन का वातावरण और हैं,
विश्वासों की परिधि और तो,
अभिलाषा-संवरण और हैं
दो कूलों पर स्वप्नाचल सम,
गीतों में पलते जायेंगे।
कब तक यों चलते जायेंगे ?
तिमिर दुकूल ओढ़कर शशधर
पूनम से चुप रास रचाता,
ज्योत्स्ना-प्रीत बिखर जाती हैं,
लाख यतन पर छुपा न पाता,
रवि से तीखे नयन जगत के-
क्या कैसे छलते जायेंगे ?
कब तक यों चलते जायेंगे ?
●कवयित्री संपर्क-
●91658 66609
chhattisgarhaaspaas
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