• poetry
  • इस माह के कवि : डॉ. प्रेम कुमार पाण्डेय [केंद्रीय विद्यालय, वेंकटगिरी, आंध्रप्रदेश

इस माह के कवि : डॉ. प्रेम कुमार पाण्डेय [केंद्रीय विद्यालय, वेंकटगिरी, आंध्रप्रदेश

1 year ago
435

▪️ डॉ.प्रेमकुमार पाण्डेय

👉 त्रासदी

इस समय की
सबसे बड़ी त्रासदी है
ईमानदारी
रचे जाएंगे चक्रव्यूह
हर द्वार होगा चाक-चौबंद
सारे जिरहबख्तर होंगे नाकाम
जन्म से पूर्व संस्कार घुट्टी
निश्चित ही होगी नाकाम
मारा जाएगा अभिमन्यु
उत्तरा भोगेगी वैधव्य
ईमानदारी के इर्द-गिर्द होगा
वीभत्स ताण्डव
बोलने का नहीं
कहने का अधिकार होगा सुरक्षित
कौवे उड़ाये जाएंगे
कहलवाया जाएगा
श्वेत कपोत
सब मिलकर कोरस गायेंगे
सियार गायन का पद्म पायेंगे।

•••••

👉 बचपन का पता

मेरे बचपन का पता
दालान के कोने के छज्जे पर
घोंसले से झांकते
पंख विहीन चूजों की
पीली खुली चोंच में
दाना डालती चिड़िया से
पूछ सकते हो
वो बता देगी मुकम्मल
मेरी पतंग का रंग भी‌‌।

और गहरा कुछ जानना है तो
उमरार नदी के
खलेसर घाट की
सीढ़ियों के खोह में
रहने वाली मछलियों से
पूछ सकते हो‌।

पूछ सकते हो
मेरे बचपन का पता
स्कूल के मैदान के कोने में
खेलने वाले
रेशमी गुदगुदे पिल्लों से।

अगर पूछना ही चाहो
मेरा बचपन
नाज़ुक खूबसूरत फूलों से तो
नागफनी से भी ज़रूर पूछना
क्यों कि वो
कभी गुमराह नहीं करती ।

उमरार बांध में
समाधि ले चुके
पेड़ों की सूखी डाल पर
बैठे कौवे भी
बखूबी जानते हैं मुझे
वे कर्कश ज़रूर हैं पर
सच्चा सच्चा बोलते हैं।

उस मिमियाती
बकरी के बच्चे से भी
पूछ सकते हो
जिसका पिछला एक पैर
अजगर के बच्चे के मुंह में था
मैं साक्षी ही नहीं
सहभागी भी था
उसके जीवन संघर्ष में।

भूलकर भी
मेरे बचपन का पता
मोबाइल,टीवी और कम्प्यूटर से
मत पूछना
ये दिन रात बकबक करते हैं
पर इन्हें
कुछ भी पता नहीं ‌है
ये तो बस
प्राणवान होने का
अभिनय करते हैं।

अगर पूछना ही है तो
बेसरम की घनी झाड़ियों में
छिपे सायकिल के
उतरन टायर से पूछो
जिसने मेरे हज़ारों डंडे खाकर भी
मुझे प्रसन्न रखा और
उसकी अद्भुत सीख
मैंने बांध ली गांठ।

•••••

👉 सच को सच ही रहने दो

मुझको मुझ- सा रहने दो
मन की बातें कहने दो
अब हां की हां हां रहने दो
कुछ कड़वा भी कहने दो|

चमचा बेलचा रहने दो
मुंह पर मुंह की कहने दो
नगर ढिंढोरा रहने दो
प्रेम की बातें कहने दो|

अपनी- अपनी रहने दो
मन की मन से कहने दो
खुद का भोंपू रहने दो
पंचजन्य को कहने दो|

मैं ही सच हूं रहने दो
बूंद – बूंद को कहने दो
समर की बातें रहने दो
निर्मल मन को कहने दो|

पंख से आगे रहने दो
अस्तित्व की बातें कहने दो
जुल्म सितम अब रहने दो
मरहम मरहम कहने दो|

उल्टा- सीधा रहने दो
सीधा-सीधा कहने दो
बहुबली की रहने दो
मजलूमों की कहने दो

सच को सच ही रहने दो
खूं को खूं ही कहने दो
बघनक्खों की रहने दो
मुरली को भी कहने दो|

•••••

👉 अर्द्धसत्य

यह धरती
सदियों से बोलती आ रही‌ है झूठ
सूरज डूब गया
चांद खिल गया
यह सब षडयंत्र है
बदनाम करने का‌।

शायरों ने परोसा
एक और झूठ
नदियों के आंसू से
समंदर नमकीन हो गया।

इससे भी बड़ा झूठ
बुद्धिजीवियों ने फैलाया
मेहनत करने से
पेट में रोटी जाती है।

झूठ की पराकाष्ठा देखिए
सिरफिरों की फितरत
लाल गुलाब से
जीवन शुरू होता है।

झूठ के हाट बाजार में
नित नये झूठ
खरीदे- बेंचें जाएंगे
झूठ को ही बिलों कर
जो सार निकलेगा
होगा वहीं परम सत्य।

•••••

•संपर्क-
•98265 61819

🟥🟥🟥🟥🟥

विज्ञापन (Advertisement)

ब्रेकिंग न्यूज़

कविता

कहानी

लेख

राजनीति न्यूज़