कविता, जीवन की परिभाषा- सरोज तोमर
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रात-रात भर चंदा करता,
जग कर अवनि की रखवाली।
लेकिन रूप सजाया करती,
सूरज से धरती मतवाली ।
जीवन की परिभाषा हँस- हँस
कर देना ही तो है आली,
यही सोच कर दूर-दूर से ,
उम्र लुटा देता चकोर है ।
मृगतृष्णा का नाम जि़न्दगी,
और प्यार का स्वाद गरल-सा,
इंतजा़र में कट जाता है ,
लेकिन युग भी मधुरिम पल -सा ।
राहों पर बिछती पलकों पर ,
तैरा करता सपना छल -सा,
और कशम कश में ही साथी ,
रात बीत ,आ जाती भोर है ।
छुपने नहीं दिया है तुझको ,
तेरी छबि जो नैन बसी है ।
ओ अभ्यासी नाविक तेरी ,
भँवर बीच क्यों नाव फँसी है?
आँख मिचौनी छोड़ हठीले ,
अब तो भाती नहीं हँसी है।
यह कैसा वरदान मिला कि
जन्म-जन्म से भींगी कोर है?