कविता, मन- डॉ. बीना सिंह
राज की बात मैं आज बताती हूं
मेरे अंदर भी एक समंदर उछलता है
कभी इधर तो कभी उधर बच्चों सा
नादान भोला भाला मन मेरा मचलता है
विचारों का आना और यूं चले जाना
आवारा की तरह बेलगाम बहे जाना
ह्रदय मंजूषा में सहेज कर रखा है
तुम ही बता दो यह अच्छा है या बुरा है
यादों के पगडंडी पर मन टहलता है
मेरे अंदर भी एक समंदर उछलता है
हम और तुम बस तुम और हम
जीवन मृत्यु के बीच सांसो का संगम
सजना सवरना फूलकी तरह खिल जाना
घरौंदे की तरह बिखर माटी में मिल जाना
दौर निरंतर परिवर्तन。का यह चलता है
मेरेअंदर भी एक समंदर उछलता है
भूली बिसरी बातें चाहत और फरियादे
शतरंज。 की चाल मोहरे जैसे प्यादे
जिंदगी की पटरी पर रेलम रेला
कभी जीत कभी हार खेलम खेला
पलपल टिकटिक करता वक्त बदलता है
मेरे अंदर भी एक समंदर उछलता है
राज की बात आज मैं बताती हूं
मेरे अंदर भी एक समंदर उछलता है
कभी इधर तो कभी उधर。 बच्चों सा
नादान भोला भोला मन मेरा मचलता है