नव गीत, शीत ऋतु मन झूम गाये -डॉ. मीता अग्रवाल ‘मधुर’, रायपुर-छत्तीसगढ़
शीत ऋतु मन झूम गाये
सनन सन सन पवन डोले
संग मेघों को उड़ा कर
शीत ऋतु मन झूम गाये
ओस बूंदो में नहाकर।
शीत ऋतु मादक सुहानी
चाँदनी चंचल जवानी
यामिनी का घुप अँधेरा
नेह जगता दिल रुमानी
रात बीती भोर जागे
संदली सपने जगाकर
शीत ऋतु मन झूम गाये
ओस बूंदो में नहाकर।
अरुण किरणें भोर तारे
आस भरते नयन कारें
दस दिशाए दे निमंत्रण
जय करें अभिलाष सारे
तान से मकरंद चहके
गीत अभिनंदन सुनाकर
शीत ऋतु मन झूम गाये
ओस बूंदो में नहाकर।
गुनगुनाती धूप छाया
प्राण रस संचार करती
नेह का शीतल प्रसारण
गीत गाती साँझ भरती
रंग स्वपनिल भर दृगों में
रत्न जड़ता हि सुधाकर
शीत ऋतु मन झूम गाये
ओस बूंदो में नहाकर।
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नाद ब्रम्हा ऊँ उचारे
योग काया नृत्य नर्तन
सार जीवन का समाया
अहम का सुन्दर विसर्जन ।
आत्मा परमात्मा का
मेल है आनंद प्यारा
भेद रह जाता न कोई
सात सुर संगीत धारा
कर भलाई दे सहारा
साधना नित भावअर्चन
नाद——
फूल खिल आलोक फैले
सुर सजा सरगम बिखेरे
जीव जड़ता ही मिटे है
जाल शब्दों के बुनेरे
शब्द गुंजित गीत माला
स्वर सुगंधितमय समर्पण
नाद—-
पथिक मन बुनता किनारा
राह ढूँढे नित विचारा
मात करती है कृपा जब
गीत गूँजे गाँव सारा
योग कर लो रोग भागे
मंदमति आलस्य अर्पण
नाद ब्रम्हा ऊँ——-
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पीर ने फिर धुन सुनाई
शब्द सरिता धार गंगा
पावनी तटबंध धाई
गीत गाया पत्थरों ने
पीर ने फिर धुन सुनाई।
छलछलाती राग नदियाँ
दादरा टप्पा सुनाती
बाजती पग पायली भी
लाज भर घूँघट उठाती
माँग का सिन्दूर बोले
मायके से ले विदाई
गीत गाया—
हर खुशी दामन भरे है
नीर हर पल साथ देते
आरती अंतस उतारे
हर बलाएँ हाथ खेते
नींद से अब जागती सी
ये सुबह नवरीत लाई
गीत गाया——
प्रश्न जीवन मौन जागे
प्राण लेते नित परीक्षा
टूटता निर्मम सपन जब
जाग जाती भोग शिक्षा
ओस बूँदें तृण भूलो में
मोतियों सी झिलमिलाई
गीत गाया पत्थरों ने
पीर ने फिर धुन सुनाई।