कविता, विरक्ति -अरुण कुमार, सरायपाली-छत्तीसगढ़
विकल्प की अनुपस्थिति का
कारण हैं ;
विकल्प की उपस्थिति में
इंसान का वैराग्य होना
गैरजिम्मेदार ही कहलायेगा ;
चारो ओर से रिक्त इंसान ही
विरक्त हो सकता हैं
जब कुछ ना बचा हो
ना जिम्मेदारी
ना आगे बढ़ने की जगह
ना दिशा ना निर्देश ;
जब सारे भाव शून्य हो जाते है
और आध्यात्म ही सर्वनिष्ट होता हैं
तब वैराग्य का भाव ही
सर्वश्रेष्ठ है;
मैं सांसारिक हूँ
मैं अकेला आया जरूर था
पर अकेला रह नही सकता
मैं चाहे जितने अच्छे
और महान कार्य कर लूँ
पर अपनी जिम्मेदारी से भागा
तो कायर ही कह लाऊँगा ;
मैं नहीं जा सकता
अपनी सोती हुई ब्याहता को
आधी रात में छोड़ कर
वो मेरी जिम्मेदारी है
मेरे सुख दुःख की साथी है
मुझ अजनबी के साथ
वो मेरे भरोसे में ही आयी है ;
कैसे छोड़ दूँ
मैं
उसे
कौन सुनेगा
मेरे जाने के बाद
उसकी वेदना को
उसकी करूणा को
और
उसके बहते हुये आँसू
कौन पोंछेगा ?
जीने दे देगा
उसे ये समाज
उसके नजरों में
जो सवाल होंगे
वो मुझे अपनी ही नजरों में
गिरा देंगे ;
नहीं बनना
मुझे कोई महान
नहीं चाहिए
महानता की कोई कसौटी
मैं साधारण इंसान ही अच्छा हूँ
और मैं गुजरता जाऊँगा
अपने घर की छोटी-मोटी
खुशियों के साथ ही ;
होगा बुद्ध बनना आसान
पर मुझ में इतनी भी
हिम्मत नहीं !
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