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रचना आसपास : दीप्ति श्रीवास्तव

11 months ago
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👉 दीप्ति श्रीवास्तव
[ भिलाई, जिला- दुर्ग, छत्तीसगढ़ ]

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अपना हिस्सा

‘अरे बहू एक गिलास पानी देना’
‘लाई बाबूजी’
रामेश्वर प्रसाद की बड़ी बहू पानी का गिलास देते हुए बोली
‘बाबूजी मां की चिट्ठी आई है बबुआ का ब्याह तय हो गया है ।’
‘ठीक है तैयारी कर लो जाने की ‘
‘बाबूजी मां ने माह भर को बुलाया है यहां कैसे चलेगा ।’
‘तुम चिंता मत करो करो मैं मंझले के पास चला जाऊंगा ।’ सुनकर बड़ी बहू निश्चिंत हो गई
बाबूजी मंझले के पास चले गये । ‘बहू पानी देना’
‘बाबूजी वहीं स्टूल पर जग रखा है ले लिजिए’ दूसरे कमरे से बहू बोली
‘बहू चाय बना देना मेरे लिए ‘
‘अभी बच्चे को पढ़ा रही हूं ‘ दो टूक जवाब दे दिया।
‘बाबूजी को समझना होगा बच्चों की पढ़ाई के बीच कोई काम न बोले ।अम्मा को बहुत काम पर लगाये रहते थे । हमको भी वैसे ही काम पर लगाएं रखना चाहते हैं।’
मंझली बहू ऊंची आवाज में बेटे से कह रही थी । हालांकि वह भी बाबू जी की सुख सुविधा का पूरा ध्यान रखती बोलती रटपट थी।
रामेश्वर प्रसाद अपने बेटों को वह दब्बू कहा करते थे । पलट कर अपनी औरत को समझा नहीं सकते ,’जोरू के गुलाम कहीं के ‘ । बेटों ने अपनी मां का दुख नजदीक से महसूस किया था , उस जमाने की पढ़ी-लिखी मां से बाबूजी सबके सामने भी ऐसा व्यवहार करते थे जिससे मां अंदर ही अंदर घुटती रही । दिल पर लगा घाव कब नासूर बन गया वह तो बहुत बाद में समझ आया। जवानी में ही आठवीं और ग्यारहवीं पढ़ने वाले बच्चों को छोड़ इस संसार से विदा ले ली । फिर क्या था दादी और बुजुर्गों ने सलाह मशविरा कर साल भरने के पूर्व नई मां का आगमन उस घर को फिर हरा-भरा कर दिया और पास-पड़ोस के मुंह पर ताला जड़ दिया जो काना फूसी करते थे सौतेली मां क्या सलूक करे बच्चों के साथ न जाने । बाप तो दूसरी वाली को सिर आंखों पर बैठाकर रखेगा । क्या सौतेली मांओं का दुख भी किसी ने नजदीक से जाना है? जिसे हर बात पर पहली वाली से तुलना ही नसीब होती है दूजा ब्याह मतलब लड़की में जरूर कोई खोट होगी । अच्छे संस्कार वाली दूसरी पत्नी को भी संशय की दृष्टि से घरवाला ही देखता । दो चार महीने में ही नई मां से बच्चे हिल मिल गये पर नहीं बदला तो बाबूजी का रवैया । दोनों लड़के हमेशा नई मां की तरफदारी करते । इसी बीच उनके तीसरे भाई का जन्म हुआ । बच्चों और मां को देख कोई अंदाजा नहीं लगा सकता था कि यह सौतेले मां है । बल्कि बड़े होते बच्चे मां की ढा़ल बनने की कोशिश में रहते । एक मां उन्होंने खोई है अब इस मां को वैसी स्थिति में नहीं देखना चाहते इसलिए उनके पक्ष में खड़े हो जाते।
बड़े बेटे को इंजीनियरिंग के लिए विदा करते हुए
पिता रामेश्वर प्रसाद ने राहत की सांस ली उन्हें जवान बेटे का मां से खुलकर व्यवहार करना न भाता पर अपनी बात किसी से कह भी नहीं सकते थे कि किस तरह का कांटा उनके मन को बेधे जा रहा है । अब चैन की नींद आयेगी । मां बेटे का प्रेम उन्हें भीतर तक कंटक की माफिक चुभता था। मन का चोर जग जाहिर न हो इसलिए संयम बरतते यद्यपि अप्रत्यक्ष रूप से पूरी नजर रखते। बेटे का एडमिशन करा निश्चिंत हो गये । अब छुट्टियां बिताने ही आयेगा । समय अपने घोड़ों पर सवार हो भागा जा रहा था । बेटों के शादी ब्याह हो वह पोते पोतियों वाले हो गये थे पर पत्नी का साथ ऊपर वाले के घर से ज्यादा लिखवा कर नहीं आये थे । बुढ़ापे में एकाकीपन सालता ।
बेटो को पत्नी के साथ बराबर का व्यवहार करते देख झुंझलाहट में बेटों को ही चार बात सुनकर संतोष पाते। उनकी इस आदत से जहां भी रहते घर में आतंक छाया रहता । ऐसा नहीं कि कोई उनको प्यार नहीं करता पर उनके व्यवहार की तपिश घर को झुलसाने में कामयाब रहती ।
उम्र के अंतिम पड़ाव पर पहुंच गये फिर भी उनको लगता मेरे चिल्लाने से लड़के सुधरे रहेंगे वरना जोरु के हाथ की कठपुतली है । नई पीढ़ी के पोते भी उनको देखकर कुछ तो ठीक रहेंगे ।अब तो पोते ही दादाजी की देखभाल करते अस्पताल वगैरह लाते ले जाते । छोटी बहू को दादाजी प्रारंभ से नापसंद करते । अपनी पसंद से शादी करने के कारण वह कभी उनके मन के पास न आ पाई साथ ही दादाजी से हर बात को सीधे साफ सरल तरीके से कहने वाली चाची को दादाजी ने तिरिया चरित बहू नाम से नवाजा था बहुत मजबूरी में ही वह उनके पास एक बार इलाज कराने बंबई गए ‌।
जब दादाजी की मृत्यु हुई तो चाची का रोना देख सब हतप्रभ थे उनके विलाप में जो वह बोल रही थी तो पीछे खड़े लोग मुंह इधर उधर कर हंस रहे थे ।
‘पिताजी लौट आओ ना…’
‘अब तो उठ कर बैठ जाओ ना…’
‘चलो उठो मैं पानी ला रही हूं पीने के लिए ..’
ऐसा ही सब बातें जोर जोर से बोल कर रूदन किये जा रही थी ।
ऐसी बातें सुनकर उनकी मिट्टी में आये कुछ लोग मुंह छुपा कर दबी हंसी हंस रहे थे माहौल गमी का था पर उनके इस व्यवहार को देखकर बार बार इन बातों को सुनकर बुढ़ी ताई से रहा नहीं गया बोली -पिताजी अगर अभी उठे तो सबसे पहले तुम ही सबसे पहले भाग खड़ी होगी छोटकी बहू । सपने में भी देखोगी तो डरवाओगी बहू । ये सहज सपना नहीं होगा ।
‘अब समझ आया तुमको काहे तिरिया चरित बोलत रही हमर देवर बाबूआ ।’
बूढ़ी ताई की इस सहज सी बात पर छोटकी बहू असहज हो उठी और विलाप तुरंत बंद हो गया ।
बाबूजी की तेरहवीं भी न निबटी थी हिस्से बंटवारे की बात छोटकी बहू ने ही उठाई । साथ ही यह भी बोल गई हमारी शादी में तो कुछ खर्चा नहीं हुआ तो जेवर वगैरह का हिसाब किताब होना चाहिए । बम्बई वैसे भी बहुत महंगा शहर है। हम इस पैसे से फ्लैट खरीदेंगे । बहुत सपने देखे है इस दिन के लिए । जीते जी तो कुछ दिया नहीं हमको। सभी उपस्थित रिश्तेदार अवाक हो गये उसके बोल सुनकर । देखो कैसे नजरें गाड़े बैठी थी संपत्ति पर कभी सेवा करने न आई । तब तो बहाने बनाती रही अब हिस्से बंटवारे की बात कर रही है। अपना हिस्सा मांग रही है ।

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चलो अपने अधिकार का प्रयोग करें…

आह …. हमारा छ्त्तीसगढ़ आ गया | अरे भैया तुम कैसे जान गए ट्रेवल बस से लौटते हुए ऑफिस ग्रुप में संतोष अपने सहकर्मी से बोला | अरे हमारा प्रदेश है क्यो नही पहचानगे इसकी मिट्टी की खुशबू से हमारा नाता पैदाइशी जो रहा है | मन ही मन सोचने लगा अब इस दूसरे प्रदेश वाले को क्या बताए कि रोड़ मे जो गाय-भैस दिख रहे है वही तो सबसे बड़ी पहचान है इस राज्य की | इस बस से कितने प्रदेशो से होकर आ रहे है कहीं सड़क पर बैठी या विचरण करती मवेशी दिखी ? उत्तर होगा नही | यही तो सबसे बड़ा अंतर है जो हमारे राज्य को दूसरों से भिन्न बनाता है देखो कितना सम्मान देते है इनको | इनका भी सड़कों पर उतना ही अधिकार है जितना हमारा ,फर्क केवल इतना है ये चौपाया मतदान करने का अधिकारी नही है | अगर इन्हे भी मतदान का अधिकार प्राप्त होता तब गजब हो जाता फिर तो मनुष्य के स्थान पर नेतागण इन्हे ही दारू-चारा खिलाते पिलाते जैसे मतदान से पहले मनुज को लुभाने और वोट खरीदने ना-ना प्रकार के प्रलोभन देकर अपना स्वार्थ निकालते है | हां अब मतदाता भी समझदार चुस्त चालाक हो गया है नेता के गुण धर्म से वाकिफ हो लाभ स्वीकार कर बाद मे पलट जाता है | अब भैया आप ही बताओ क्या नेता को ही पलटने का अधिकार है क्या ? मतदाता को भी है कि नही ? आखिर उनके भी अपने हक और अधिकार है कि नही ?यह विचारणीय प्रश्न है इस पर राष्ट्रीय बहस होनी चाहिए कि नहीं ?
अभी देखो भैया चुनाव का समय है अगर मतदाता की जो भी मांग है उसे पूरा करने हल्ला कर सकते है अभी ही हम चौपाया को रोड़ हटाने की मांग करेंगे तब कोई गौ रक्षक हमारा विरोध नही करेगा यही तो हमारा यानि मतदाता का विशेष समय है अभी कागजी कार्यवाही नही होगी जो भी होगा ठोस धरातल पर ताल ठोक कर होगा | पशु प्रेमी बड़ा स्नेह दर्शाते है जब आपके साथ कोई दुर्घटना हो जाती है आपका हाथ पाँव टूट जाता है तब अकेले ही आर्थिक ,मानसिक , शारीरिक कठिनाई से झूंझते है | रात हो या दिन आप रोड़ पर पाँव बिना देखे रख दिये तब तो गोबर से आपका पाँव लिपट ईत्र की खुशबू दे जायेगा और आपके फिसलने की संभावना बढ़ जाएगी और चुनाव के समय एक-एक मत का महत्व कितना ज्यादा होता है यह सब राजनीतिक पार्टी जानती है इसलिए आपको कोई फिसलने नही देना चाहेगा सभी पार्टी के लिए आप महत्वपूर्ण है भैया | अगर आप फिसल गये तो कोई आरोप अपने मत्थे नही लेगा सरकारी सुविधा का लाभ जरूर मिल जायेगा बल्कि क्षतिपूर्ति भी मिलने की पूरी संभावना है | कोई और समय होता तो कहते ठीक से देख कर नही चल रहा होगा या नशे में रहा होगा |अभी तो पूरी संभावना के साथ एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का उनको मौका अवश्य प्राप्त हो जायेगा सोशल मीडिया ,टेलीविजन पर डिबेट शुरू हो जायेगा | दिन रात ब्रेकिंग न्यूज चलती रहेगी रातो रात गिरने वाले के घर हर दल के नेता पहुंचने लग जाएगें उन्हें खरीदने की होड़ लग जाएगी तत्पश्चात उस पर नया घोटाला स्कैंडल का जन्म होगा चुनाव के बाद जीतने वाली पार्टी उस पर आरोप लगा सरकारी तंत्र का दुरुपयोग करने से बाज नही आएगे | अभिव्यक्ती की आजादी का हमें पूरा अधिकार है इसलिये हम तो कहते है भैया इस विषय पर आवाज उठाने इससे बेहतर मौका हाथ नही आएगा | बहती गंगा में सब हाथ धोना चाहते है हम भी उससे अछूते नही ,चुनाव सिर पर है हाथ क्या हम तो डुबकी भी मारने तैयार है | इसलिये चौपायो के अधिकार सीमित करने बात उठने की सोच रहे है हमारी सड़को पर केवल हमारा यानि जनता-जनार्दन का अधिकार होना चाहिए |हमारी सुरक्षा हमारा अधिकार तभी करेंगे मताधिकार । समझ गये ना जनाब |

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समय के साथ

आपको मालूम है, समय भी चलता है हां जी उसके पांव नहीं होते फिर भी चलता है किसी ने देखा है क्या समय के पांव ? हमने तो नहीं देखे ? जाने वह कौन सी चीज है जो अदृश्य होकर समय को निरंतर चला रही है या कहे भगा रही है । देखो-देखो कैसे पल पल सटक कर चुपके चुपके निकल रहा है। हमारी दिनचर्या समय के साथ बंधी हुई है । इस दिनचर्या से छुटकारा संभव नहीं है । सुबह उठते ही दांत साफ करना नहाना धोना खाना पीना सोना सब तो दिनचर्या ही है ना इसके बिना कुछ काम आगे बढ़ ही नहीं सकता । फिर समय की पाबंदी कोई चीज होती है कि नहीं ।
अब देखो ना चुनावी माहौल में हम सभी चुनावी रंग में रंगे हुए है। भीषण गर्मी पर माहौल देख कर लगता है एयरकंडीशन में बैठे रहने वाले नेता और कार्यकर्ता सभी पार्टियों के चुस्त फुर्तीले तरोताजा है । उम्र उनके इशारों पर नाचती हैं वे थकते नहीं  । रात दिन रैलियों को संबोधित करते हुए समय कुसमय बस काम का जुनून सवार होता है उनके सिर । सिर से याद आया उनका दिमाग चुनावी समय में अच्छा खासा उपजाऊ बन जाता है जिससे व्यंग बाणों की रंगरंगीली फसल दिन पर दिन नई नई उगती है । यह फसल ऐसी होती है जिस पर रोज नवीन फल उगते हैं जिसके रस का आंनद उठाती ही जनता यानि मतदाता । उनको जिसे वोट करना होगा वे करेंगे परन्तु इन व्यंग व्यंजनों का आनंद सोशल मीडिया पर बहुत उठाते हैं और तो और किसी काम के लिए फुर्सत नहीं है पर सोशल मीडिया पर कमेंट लिखने के लिए भरपूर मात्रा में समय निकल लेते हैं। अनजान से भी लानत मलामत या सहयोग करने से नहीं चूकते । देखो किसी किसी कमेंट पर कितने सारे लोगों का तजुर्बा इमोजी अथवा लिखावट के माध्यम से दिखलाई देता है। यही वह समय है जब घरों की महिलाएं शांति से अपना समय व्यतीत करती है । पति-पत्नी को झंझटों के लिए समय नहीं होता । अब बताइए सोशल मीडिया पर महत्वपूर्ण मुद्दों पर कमेंट लिखने से समय नहीं बचता तो ऐसे में पत्नी की मीनमेख निकालें उसके लिए समय कहा अन्यथा पत्नी पति की कमियां निकालें । घर की सरकार खुश होती है तो घर में सुख-शांति का जमावड़ा रहता है घर-घर जैसे लगता है सुखी नीड़ हमारा चरितार्थ होता । हमारे चुनावी माहौल में घर-घर में चुनावी चर्चा का एक दौर दिन में जरूर माहौल को आनंदमय बनाता है । नेता से जुड़े लोगों के घर की हालत तो देखते बनती है । बच्चे बूढ़े जवान सभी दूर-दूर के चाचा मामा ताऊ केनवासिंग में लगे रहते हैं । अभी कर लो मेहनत जीतने के बाद फल के प्रति आश्वस्त हैं  रिश्तेदार जो ठहरे कुछ नहीं तो नमकीन फल बिस्किट का टोकरा तो घर में यूं ही पहुंचते रहेगा पूरे पांच साल बस अपना काम करते चलो पूरे मनोयोग से ।
कल की ही बात है खबरिया ने खबर लाया फलानी पार्टी ने उस गांव के लोगों को सांठ लिया फिर क्या था… अपने पक्ष में करने एक एक घर में लोगों से वादा लिया गया हमको ही मत देना हम तुम्हारे दूर की फुफेरी चाची के भाई के दोस्त हैं । भैया जी हमको बहुत मानते हैं यदि जीता दिये और कोई काम नहीं बन रहा तो हमको याद करना हमारे चरण तुम्हारे लिए सदैव तत्पर रहेंगे ।
यह समय चलकर पांच साल आगे निकल जायेगा
मेहनत से समय को तो पकड़ नहीं सकते पर चुनाव परिणाम को उलट जरूर सकते हैं। घर-घर दस्तक दे अपना मतलब साधने में लगे हैं। अब समय ही बताएगा कि मतदाता के मन में क्या था जिसका परिणाम यह निकला । मतदाता ने किसको कौन वर्तमान समय को गले लगाने का आनंद दिया ।

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किल्लत

‘फोन पर रूआंसी रचना मां को बता रही थी आज का दिन कैसे कटा ।’
‘आफिस वाले मान गए तो वह वर्क फ्रॉम होम लेकर घर आ जायेगी।’मां के लिए तो बेटी घर से काम करेगी यह सुनकर सुखद अहसास होना ही था । वहीं रचना को पुरानी यादें दिमाग के तार झंकृत कर रही थी ।
‘अरे रचना उठ कर देखो तो यह टप-टप की आवाज कौन से बाथरूम से आ रही है कहीं का नल खुला रह गया है शायद ?’
घर में कुल जमा चार लोग तिस पर चार बाथरूम
सफाई कोई करता नहीं सबकी जिम्मेदारी केवल मां की और हाथ बंटाने कोई नही आता उपयोग करने सबको सेपरेट लेट-बाथ चाहिए।
मां बड़बड़ कर रही थी पर रचना अपने मोबाइल फोन में व्यस्त थी जैसे कुछ सुनी ही नहीं और सुनी भी होगी तो अनसुना करना मां की बातों की अवहेलना करना उसकी आदत में शुमार हो गया था । गर्मी आई नहीं कि मां का पानी पानी पानी…….को लेकर विशेष सावधान हो जाना रचना को कतई पसंद न था । हमेशा पानी को लेकर उपदेश …।
रचना को उठते न देख मां से रहा न गया बाथरूम का टपकता नल बंद करने स्वयं उठ पड़ी क्योंकि उन्हें पानी का यूं व्यर्थ जाना पसंद न था ।
उनके बचपन के जमाने में घर-घर नल नहीं थे । कुएं से पानी कांवड़ में कहार भरकर लाता था । महीना का उनकी मां कांवड़ वाले चाचा को पांच रुपए देती थी । उनकी मां यानि रचना की नानी । हाथ मुंह धोने और दोनों समय नहाने गर्मियों में सबको झाड़ पेड़ के पास रखी बाल्टी का पानी उपयोग करने का निर्देश होता था जिससे गर्मियों में उनके भी जीवन की रक्षा हो सके। सीमित पानी सो गर्मियों में बड़े सम्हाल कर उपयोग किया जाता। घर के बच्चे और पुरुष सुबह और शाम पेड़ पौधों के पास रखे पत्थर पर ही नहाते क्योंकि एयरकंडीशन और कूलर का चलन नहीं था शाम को नहाने से बढ़िया नींद आती क्योंकि शरीर ठंडा रहता था ।
बचपन में रचना ने नानी को एक बार हंसते हुए मां से कहते सुना था तुम लोग बच्चों को पानी का मोल सिखाया करो कैसे नल खोल कर ब्रश करते है । और उस समय पढ़े आर्टिकल पर उपहास करते सुना था देखो देखो क्या लिखा है
एक दिन पीने का पानी भी बोतल में बंद बिकाऊ होगा ।
आज यह सब बातें रचना के दिमाग में इसलिए घुमड़ रही थी क्योंकि बैंगलोर की जिस सोसायटी में वह रहती है आज वहां पानी खत्म हो गया और टैंकर वालों की मनमानी पैसे देने पर भी पानी नहीं है कह रहे हैं वहां भी अन्य सोसायटी वालों की भीड़ है जो मांग कर रहे हैं टैंकर पानी लेकर पहले उनकी सोसायटी पहुंचाये । पैसे देने सब तैयार पर पानी की किल्लत स्थिति को असहज बना रही है। क्या स्थिति आ गई कि पैसा है पर मुफ्त वाला ईश्वर प्रदत पानी का नहीं ? जल का मूल्यांकन करने में असमर्थ रहने वाले हम मनुष्यों को यह दिन तो देखना ही था।
पीने का पानी तो सबने बोतल बंद वाला खरीद लिया तथापि निस्तारण के लिए पानी तो चाहिए ?
आज वह स्वयं आफिस बिना नहाएं आई क्योंकि बाल्टी में पानी भर कर रखने की आदत न थी इसके पूर्व पानी की कभी इतनी किल्लत न हुई थी जैसी इस बरस हो रही है।
एक समय नानी द्वारा पानी को लेकर किया गया उपहास आज सिर पर सत्य का भांगड़ा कर रहा है । वह भी आज कैसे थोड़ा थोड़ा बोतल का पानी उपयोग कर रही है । मां का पानी को लेकर फिक्रमंद होना समझ आ रहा है कैसे गर्मी में घर के बोरवेल पंप से सुबह चार बजे उठकर टंकी भरना और तुम लोग नल को ठीक से बंद नहीं करते जैसे घोड़े पर सवार हो भाग रहे हैं अरे एड़ लगा रूको और नल ठीक से बंद करो । ‘हां’ आज के जमाने में मोबाइल भी तो हम लोगों को जाहिल बनाने वाला एक घोड़ा ही तो है । सोशल मीडिया में पानी को लेकर लिखे बड़े बड़े व्याख्यान पर बेहतरीन कमेंट करने वाली रचना को जब यथार्थ के धरातल पर पानी संकट से जूझना पड़ा तब आभाषी धरातल और हकीकत से दो-चार होना बड़ा कष्टप्रद लग रहा है । “जहां न हो एक बूंद जल वह महल किस काम का “कहावत का अर्थ समझ आ गया।

• संपर्क-
• 940 624 1497

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