






कविता आसपास : रंजना द्विवेदी
रंजना द्विवेदी
• मजदूर
– रंजना द्विवेदी
[ रायपुर : छत्तीसगढ़ ]
मजदूर
जब देखती हूं मजदूरों को
तो सदा ही सोचती हूं
कैसा है वो?
दिन भर कड़ी मेहनत कर
सुख चैन से रहता है
ना तो अतीत
ना ही भविष्य की चिंता
बस वर्तमान में जीता है
जेठ दोपहरी के धूप में
पसीने से तरबतर,लथपथ
किस्मत को चुनौती देता है
घास फूंस की झोपड़ी में रहता है
आभावों में इनका
जीवन गुजरता है
जब देखती हूं मजदूरों को
इन्हें देख मैं विस्मित हूं
आत्मसंतोष ही इनका गहना है
जीवन की लाचारी ओढ़
वह हंसना भूल चुका है
तनावों और दुखों से लदा
आंसू पीकर मजबूत बना है
फटे पुराने कपड़े पहन
असीम सुख वो पाता है
वह किसी का गुलाम नहीं
बस अपने दम पर जीता है
धैर्य,साहस की प्रतिमूर्ति बन
कठिनाइयों से जूझता है
ना कभी वह हारता है
ना ही कभी थकता है
हंसते गाते बस वह
जीवन से लड़ता है
जीवन की वास्तविकता को
एक मजदूर ही जीता है
वह कर्मवीर बन,कर्मभूमि पर
निरंतर चलते रहता है
दिन भर कड़ी मेहनत कर
वह सुख चैन से रहता है
जब देखती हूं मजदूरों को
तो सदा ही सोचती हूं
कैसा है वो?
०००
chhattisgarhaaspaas
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