






रचना आसपास : गिरीश चंद्र मिश्र ‘शरद’

गिरीश चंद्र मिश्र ‘शरद’
[ फरीदपुर, बरेली, उत्तरप्रदेश ]
• आरती कीजै दशरथनंदन की
आरती कीजै दशरथनंदन की।
कुम्भदलन दसमुखभंजन की।। टेक 0
भरत शत्रुघ्न लक्ष्मण भाई।
रघुकुल रानि कौशल्या माई।।
विश्वामित्र यज्ञ रक्षक की।
नारि अहिल्या उद्धारक की।।
धनु भंजन सीता वरि लीजो।
जनक त्रास प्रण पूरन कीजो।।
पिता वचन प्रभु सब अनुरागे।
चौदह बरस अयोध्या त्यागे।।
तन पर वलकल वसन विराजै।
कर में धनुषबाण अति साजै।।
बालि मारि सुग्रीव बचायो।
अंगद कौ जुवराज बनायो।।
आपन प्रण किए दानव हीना।
लंका राज विभीषण दीन्हा।।
सीता लै प्रभु अवध पधारे।
पुरवासिन्ह सब दीप पजारे।।
अश्वमेध यज्ञ सर्जक की।
सीतापति पितु लवकुश की।।
सब राजा रामजी की आरति कीजौ।
जन्म सुफल कुल उज्ज्वल कर लीजौ।।
कीरत गाऊं राम राघव की।
कहत “शरद” जीवनधन प्रभु की।।
[ • गिरीश चंद्र मिश्र ‘शरद’ की रचना पहली बार ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ में प्रकाशित हो रही है. • ‘शरद’ जी ग्राम गजसिंहपुर में अध्यापक हैं, लेखन इनकी रुचि है. • संपर्क- 99278 60410 ]
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