






रचना आसपास : फरीदा शाहीन
फरीदा शाहीन
बाल भटकाव
बचपन की बेनूरी खिलखिलाहट,
सड़कों पर बालों की हलचल हवाओं में।
उन नन्हें पाँवों की धूप में रौशनी,
जब खो जाते हैं चाहे कितनी भी गहराई में।
माँ की छाया से दूर जाना है मजबूरी,
राहों में हरदम आती है उनकी याद।
जीवन की इस रोशनी के साथ,
खो जाते हैं वहीं, बचपन के ख़यालों में।
धुंधला सा दिन और भटकते बच्चे,
कोई रास्ता नहीं मिलता, कोई साथ नहीं।
आँधियों में भटकती नन्ही जानें,
माँ की यादों में रोती थीं वो हर रात।
बाल भटकाव का एक अध्याय,
बचपन की निगाहों में छुपा है।
एक सपना है, एक आस है,
कि फिर से मिलेगा वह खोया हुआ साथ।
इन बच्चों के आँसुओं में छिपा है,
उनका सपना, उनकी आस।
एक दिन आएगा, सफलता का पल,
जब वे पाएंगे अपना सपना, अपनी मनजिल का पता।
बाल भटकाव की इस चिंगारी को,
हमें जगाना है, समझाना है।
कि हर बच्चा है महान,
और हर सपना साकार होने का वक्त आया है।
[ • फरीदा शाहीन भारतीय स्टेट बैंक रायपुर में उप प्रबंधक के पद पर पदस्थ हैं. • विगत 2 वर्षों से कविता के प्रति रुझान आया और कागज कलम लेकर लिखना शुरू किया. • ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ का यह मंच नए लिखने वाले को हमेशा मोटिविशन कर लिखने की प्रेरणा देती है. इसी कड़ी में M. Sc. [Physics] तक की शिक्षा प्राप्त भिलाई में जन्मी फरीदा शाहीन की कविता ‘बाल भटकाव’ आज प्रकाशित कर रहे हैं. कविता के प्रति अपनी टिप्पणी दे सकते हैं, ताकि नए लिखने वालों को ऊर्जा मिलेगी. – संपादक. ]
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