कवि और कविता : डॉ. प्रेमकुमार पाण्डेय
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👉 डॉ. प्रेमकुमार पाण्डेय
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भूख
अरबों – खरबों वर्ष पहले
धरती थी आग का गोला
ठीक भूखे गरीब के धधकते
खाली पेट की तरह ।
ठंडे गोले पर ही
जनमते हैं
धर्म,जाति, नैतिकता और मानवता के तमाम कचरे
मुखौटों के साथ।
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नदी
नदी के प्रवाह- सी नारी
तटों पर बैठकर
कर सकते हो आचमन ।
बांधना,घुमाना
अनचाहे रास्तों पर
होता है घातक
आज नहीं तो कल
किसी नदी की तरह।
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पाखंड
सर्जक का पाखंड
सृजन से बड़ा हो गया
बस फिर क्या
तमाम कृतियां
बेहिसाब उत्पाद
देखने में ठीक ठाक
मुकम्मल पर
बोनसाई हो गये।
[ • डॉ. प्रेमकुमार पाण्डेय केंद्रीय विद्यालय वेंकटगिरी आंध्रप्रदेश में पदस्थ हैं. इनका मूल निवास भिलाई-3 छत्तीसगढ़ है. • संपर्क- 98265 61819 ]
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