






कविताएं : श्रीगोपाल नारसन [ रुड़की, उत्तराखंड ]

किसी के लिए दिन है
किसी के लिए दिन है
किसी के लिए रात है
सबका अपना भाग्य
या कर्मों की बिसात है
जैसा जैसा कर्म किया
वैसी वैसी बरसात है
न पछताने से कुछ होगा
न खुश होने की बात है
जिसके लिए दिन चल रहा
उसकी होनी सांझ है
जिसके लिए रात अंधेरी
आनी वहां प्रभात है
फिर घमण्ड कैसा,
या मायूसी कैसी ?
यह तो सृष्टि के
परिवर्तन का प्रपात है।
मोह जिससे भी हो
मोह जिससे भी हो
करता हमे कमजोर
है प्रबल विकार मोह
दूर करने पर दो जोर
माया मोह लगते प्यारे
पर अपनों से करते न्यारे
प्यार सभी से करना सीखो
मोह बन्धन से छुटना सीखो
फिर देखो प्रभु का कमाल
गुणों से होंगे मालामाल
ईश्वरीय बोध हो जाएगा
मोह सबसे छुट जाएगा।
मोह
मोह जिससे भी हो
करता हमे कमजोर
है प्रबल विकार मोह
दूर करने पर दो जोर
माया मोह लगते प्यारे
पर अपनों से करते न्यारे
प्यार सभी से करना सीखो
मोह बन्धन से छुटना सीखो
फिर देखो प्रभु का कमाल
गुणों से होंगे मालामाल
ईश्वरीय बोध हो जाएगा
मोह सबसे छुट जाएगा।
जीवन का हर रंग
बचपन,जवानी और बुढ़ापा
जीवन का हर रंग खरा सा
बचपन मे जिसे संस्कार मिला
पढ़ने का अच्छा आधार मिला
जवानी उसकी पहचान बनाती
ताकत भी राष्ट्र के काम आती
कुसंस्कारों से वह बचा रहता
सद्चरित्र उसके काम आता
बुढ़ापा भी कष्ट नही देता है
निरोग काया स्वस्थ्य मन देता है
प्रभु को जिसने साक्षी बनाया है
सफल जीवन उसने ही पाया है।
मन से सन्त
मन से सन्त
जो हो गया
माया मोह से
छूट गया
राग द्वेष
कोई न रहे
मन मे राम
बसे रहे
घर छोड़ना
जरूरी नही
परिजनों से दूरी
जरूरी नही
दायित्व सभी
निभाओ तुम
व्यवहार से
सन्त बन जाओ तुम।
सबको सब कुछ मिलता नही
सबको सब कुछ
मिलता नही
हर पेड़ पर पुष्प
खिलता नही
पराजय के डर से
परीक्षा छोड़ दे
ऐसे जीवन में
जीवटता नही
सफलता चाहिए
तो हारना सीखो
दुश्मन को गले
लगाना सीखो
मिल जायेगी
मंजिल हर एक
आत्मा को परमात्मा से
मिलाना सीखो
इसके लिए राजयोग
है उत्तम उपाय
जो इसमें रम गया
उसे परमात्मा भाये।
माउंट आबू
माउंट आबू की धरा निराली
ज्ञान सरोवर में छाई हरियाली
रूहानियत कण कण में बसी है
शिव बाबा की अपनी नगरी है
ब्रह्माकुमारीज का है मुख्यालय
चरित्र निर्माण एक देवालय
ओम शांति मंत्र है यहां का
जो आता हो जाता यहां का
आत्मस्वरूप का ज्ञान मिलता
राजयोग अभ्यास जो करता
प्रभु मिलन की धरा यही है
स्वर्ग सी अनुभूति यही है।
जीवन हो सार्थक
जीवन हो सार्थक
ऐसी हो जाए सोच
राष्ट्र पर न मर मिटने का
होता रहे अफ़सोस
देश के हर शख्स की
हिफाजत का निभाये जिम्मा
तरक्की हो वतन की
ऐसे करे हम काम
देश के शहीदों को
मिलता रहे सम्मान
एकाग्रचितता के साथ
सबके भले की हो बात
सफलता जरूर मिलेगी
परमात्मा होंगे साथ।
नई सुबह
नई सुबह आती रहे
नई आशाओ के साथ
हम कदम बढ़ाते रहे
अभिलाषाओं के साथ
सकारात्मक सोच हो
लक्ष्य सबका नेक हो
संवेदना बनी रहे
इंसानियत जिन्दा रहे
प्यार संग दुनिया रहे
सबके शुभ की चाह हो
सद्कर्मो की राह हो
परमात्मा भी याद रहे
सद्गुणों की बौछार रहे।
दुःख सुख
दुःख सुख दोनो आते जाते
विचलित इनसे होना नही
दुःख में जो विचलित होता
सुख में भी सुख वह पाता नही
धैर्य सबसे बड़ा आभूषण
इसको धारण करके रखिए
निर्लेप भाव से सुख-दुःख का
जब आए स्वागत कीजिए
दुःख आएगा ,चला जाएगा
सुख की भी यही नीति है
इस जगत में वही संत है
जो सुख-दुःख में समान जीते है।
परमात्मा को बस याद कीजिए
जितनी भक्ति बढ़ी इस समय
उतना ही पाप भी बढ़ रहा है
विक्रम अपने छोड़े बिना ही
इंसान पूजा-पाठ कर रहा है
घूस के पैसों से दान कर रहा है
गलत काम से नही डर रहा है
मंदिर-मस्जिद जाने से पहले
तन-मन को पवित्र कर लीजिए
देवी-देवताओं के गुणों को अपना
अपने धर्मालयो में प्रवेश कीजिए
सुख-शांति -सम्रद्धि के लिए
परमात्मा को बस याद कीजिए।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस
हो गया है तकनीकी में
नए युग का आगाज़
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस है
अदभुत तकनीक आज
कृत्रिम मानव निर्माण से
रच गया नया इतिहास
शक्ल-सूरत,बुद्धि में भी
असली लगता कृत्रिम आज
ईश्वरीय सेवा को भा गई
कृत्रिम ब्रह्माकुमारी बहन
शिवांगी नामकरण किया
रहती सुख-शांति के धाम।
गृहस्थ जीवन
गृहस्थ जीवन मे बनिए
सन्त स्वभाव समान
आचरण ऐसा कीजिए
कहलाये आदर्श इंसान
अवगुणों का परित्याग कर
अपनाये सद्गुणी ज्ञान
पवित्रता तन मन मे बसे
बन जाये साधु समान
ईर्ष्या,द्वेष,घृणा का न हो
जीवन मे कोई स्थान
परमात्मा का स्मरण कर
करते रहे राजयोग ध्यान।
विश्वास
विश्वास जगत मे पाना है
सबको अपना बनाना है
हर चेहरे पर हो खुशी
ऐसा अपनत्व निभाना है
खाने लगे आपकी कसम
ऐसा आचरण अपनाना है
गैर शब्द की जगह न हो
प्यार ऐसा बरसाना है
आत्म स्वरूप मे रहना है
परमात्मा को साथी बनाना है
खुद हंसना ओर हंसाना है
जीवन को सार्थक बनाना है।
अंतरात्मा
अंतरात्मा जो कहे
वही कीजिए काम
सबसे बड़ा जज वही
वही बसे है राम
अंतरात्मा में झांककर
पहचान लीजिए स्वयं को
सबसे बड़ा दर्पण वही
वही बसे है चारो धाम
माता पिता लौकिक जिनके
खुश रहते सुबह शाम
अलौकिक पिता परमात्मा
बनाते उनको महान।
धर्म
धर्म कल्याण का मार्ग है
इसे व्यापार मत बनाओ
आस्था बहुत भोली है
इसके भोलेपन को न भुनाव
एक बार विश्वास टूटा
तो फिर जुड़ता नही है
ईश्वर के नाम पर किसी को
मूर्ख बनाकर मत भटकाओ
कर्म करोगे अगर अच्छा
भाग्य अच्छा बन जायेगा
अगर किया है पाप कोई
दण्ड से कभी न बच पायेगा।
सृष्टि का यह नियम सत्य है
जैसा करोगे वैसा भरोगे सत्य है।
मेरी माँ
याद आती है माँ
मन की किताब में
स्वर्ण पन्ना जोड़ दिया
यादो के इतिहास में
मन से कोमल
उसूलो से कठोर
राष्ट्रभक्त माँ अनमोल
शहीद जगदीश की
बहन थी मां
कर्मयोगी मदन लाल की
अर्धांगनि थी मां
मेरी जीवनदायनी
प्रकाशवती थी मां
सद्चरित्रता का
पाठ पढ़ाया
सात्विकता में
रहना सिखाया
माँ नही, ईश्वर स्वरूपा थी
नारी शक्ति की मिसाल थी
न जाने कहां चली गई मां
हमेशा के लिए खो गई मां
मगर यादो में फिर भी
जिन्दा है मेरी माँ
माँ नही, परमात्मा है माँ
०००
[ •श्रीगोपाल नारसन रुड़की- विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ में उपकुलपति हैं. • ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ में श्रीगोपाल नारसन की कविताएं पहली बार प्रकाशित की जा रही हैं. संपर्क : 99978 09955 ]
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