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गीत : डॉ. दीक्षा चौबे

10 months ago
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• दीपक जैसा बनकर जीना
– डॉ. दीक्षा चौबे
[ दुर्ग : छत्तीसगढ़ ]

घोर तिमिर की निष्ठुरता से , लड़ना डटकर होता है ।
दीपक जैसा बनकर जीना , कितना दुष्कर होता है ।।

गुँगुआते हैं सपन सलोने , हृदय-अँगीठी के भीतर ।
संघर्षों के शिकारियों से , छुपता है मन का तीतर ।
करता नहीं भरोसा खुद पर , असफल होकर रोता है ।।
दीपक जैसा….

दृढ़ संकल्पित मन करके , कठिन चुनौती से लड़ना ।
बाधक लहरों के आगे में , अविचल पर्वत सम अड़ना ।
हवा धूल तूफानों से भी , जलना बचकर होता है ।।
दीपक जैसा…..

निर्भयता की अखंड बाती , तेल भरा हो संयम का ।
दमके ज्योति आत्मबल की , ताप न किंचित दुर्गम का ।
रोशन करना सबका जीवन , अनुभव सुखकर होता है ।।
दीपक जैसा….

• संपर्क-
• 94241 32359

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