साहित्य आसपास : विनय सागर जायसवाल
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ग़ज़ल
कुछ दोस्त हमारे ही वफ़ादार नहीं थे
वरना तो कहीं हार के आसार नहीं थे
ख़ुद अपने हक़ों के हमीं हक़दार नहीं थे
हम ऐसी सियासत के तलबगार नहीं थे
झुकने को किसी बात पे तैयार नहीं थे
क्यों हम भी ज़माने से समझदार नहीं थे
हर ज़हर पिया हमने मुहब्बत का ख़ुशी से
उन पर तो ये भी रंग असरदार नहीं थे
करते भी ज़माने से भला कैसे शिकायत
जब वो ही मुहब्बत में वफ़ादार नहीं थे
कुछ दिल की ख़ताएं थीं तो साज़िश कहीं उनकी
हम सिर्फ़ अकेले ही ख़तावार नहीं थे
यह सोच लिया हमने भी उस हार से पहले
हर बार हमी जीत के हक़दार नहीं थे
सुनते हैं ज़माने की इनायत है उन्हीं पर
जो लोग कभी साहिबे-किरदार नहीं थे
बाज़ारे-मुहब्बत का ये आलम है कि तौबा
ज़रदार हज़ारों थे खरीदार नहीं थे
इक हम ही ग़ज़ल तुझको सजाने मेंं लगे हैं
क्या और जिगर मीर से फ़नकार नहीं थे
साग़र यूँ हमें शौक से सुनता है ज़माना
हम कोई गये वक़्त की सरकार नहीं थे
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ग़ज़ल
हज़ारों तीर किसी की कमान से गुज़रे
ये एक हम ही थे जो फिर भी शान से गुज़रे
कभी ज़मीन कभी आसमान से गुज़रे
जुनूने-इश्क में किस-किस जहान से गुज़रे
किसी की याद ने बेचैन कर दिया दिलको
परिंदे उड़ते हुये जब मकान से गुज़रे
जिन्होंने अहदे-वफ़ा के दिये बुझाये थे
तमाम नाम वही दास्तान से गुज़रे
हमारे इश्क का आलम तो देखिये साहिब
रहे-वफ़ा में बड़ी आनबान से गुज़रे
न आया हर्फ़े-शिकायत कभी भी होठों पर
हज़ार बार तिरे दर्मियान से गुज़रे
कभी दिमाग़ कभी दिल ने हार मानी है
तमाम उम्र यूँ हीं इम्तिहान से गुज़रे
गिरा दिया था महल मेरे ख़्वाब का पल में
जो लफ़्ज़ तीर से उनकी ज़बान से गुज़रे
जो आज इस से बचाते हैं अपने दामन को
कभी ये लोग इसी सायबान से गुज़रे
हमारे शेर हैं मशहूर इसलिये “साग़र ”
हमारे शेर तुम्हारी ज़बान से गुज़रे
[ •उत्तरप्रदेश बरेली के विनय कुमार जायसवाल इनका मूलनाम है.साहित्यिक नाम ‘सागर’ है, विनय सागर जायसवाल है. •बरेली उत्तरप्रदेश के ‘सागर’ की रुचि पठन पाठन, पत्रकारिता और गज़ल विधा में है. •’सागर’ की रचनाएँ आकाशवाणी बरेली, रामपुर, पंतनगर और दूरदर्शन में नियमित प्रसारित होती है. •देश की कई पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन. • अनेक साहित्यिक संस्था से जुड़े हैं और साहित्यिक प्रचार-प्रसार में लगे हैं ‘सागर’ जी. • दिल्ली, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, हरियाणा और उत्तरप्रदेश सहित 400 सौ से अधिक सम्मान प्राप्त ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ में ‘सागर’ की पहली रचना/गज़ल प्रस्तुत है.- संपादक ]
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