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‘छत्तीसगढ़ आसपास’ •साहित्य { पितृ दिवस पर विशेष कविताएं } •तारकनाथ चौधुरी •डॉ. दीक्षा चौबे •रंजना द्विवेदी •डॉ. बलदाऊ राम साहू
▪️
तारकनाथ चौधुरी
[ चरोदा-भिलाई, छत्तीसगढ़ ]
श्रीचरणेषु बाबा!
आज तुम अदृश्य हो
किंतु अस्पृश्य नहीं
ईश्वर की तरह ही हर क्षण
तुम्हारी उपस्थिति है,,,
मूँदता हूँ जब भी आँखें
तुम्हारी छवि के निकट
तुम्हारे आशीष भरे हाथों का स्पर्श
तुम्हारे होने का विश्वास देता है मुझे
धीर पगों से चल रहा हूँ आज भी
तुम्हारी बनायी प्रशस्त राह पर
जो सत्यनिष्ठा,अनुशासन,उदारता,अपरिग्रह,
निश्छल प्रेम,त्याग और संतोष के गारे से
निर्मित की थी तुमने…..
कोई पूछे तो भला-
क्या दिया है बाबा ने मुझे
तो सगर्व कह दूँगा-
मुझे विरासत में संसार मिला है।
• संपर्क-
• 83494 08210
°°°°°
▪️
डॉ. दीक्षा चौबे
[ दुर्ग, छत्तीसगढ़ ]
खेला बचपन , सींचा यौवन,
यादों के कितने दर्पण।
घर की हर दीवार पर छाप है मेरी ,
हर कोने में समाई हूँ ।
पापा मैं आपकी परछाई हूँ।।
पालन-पोषण और दुलार,
मर्यादा का दृढ़ आधार।
नियम-संयम,आचार-विचार,
आपने दिए जो सुसंस्कार।
अपनाया है उन्हें, नहीं भुलाई हूँ ।।
पापा मैं आपकी परछाई हूँ।।
मेरी सफलता मेरी जीत,
सब आपको समर्पित।
आपसे है मेरा अस्तित्व,
सँवरा निखरा व्यक्तित्व ।
सुविचार,सदव्यवहार सब,
आपसे ही पाई हूँ।।
पापा मै आपकी परछाई हूँ।।
पौधा कितना ही बढ जाए,
जड़ से दूर रह न पाए।
अलग रहकर जुड़ी हूँ ,
साथ आपके खड़ी हूँ ।
महसूस किया आपका दर्द
सदैव आपकी नही पराई हूँ
पापा मै आपकी परछाई हूँi .
• संपर्क-
• 94241 32359
°°°°°
▪️
रंजना द्विवेदी
[ रायपुर, छत्तीसगढ़ ]
हां पिता ही है वह,,
खुद की इच्छाएं त्याग,पूरी करता रहा
अपनी परिवार की इच्छाएं
खुद भले ही उच्च शिक्षा ना ली हो
पर , बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने
वो चला आया था शहर
खून पसीने का कतरा कतरा जोड़ वह
बच्चों के लिए बनाया आलीशान महल
भले ही वह सुखी रोटी खाया
पर,अपने बच्चों को पिज्जा बर्गर खिलाने
वह दिन रात कमाया
बेटा बेटी की बेहतर परवरिश में
उसने खुद को भुलाया
कभी अपनी ना कही, सबकी सुनता रहा
खुद का दर्द समेट कर
वह खुशियां बिखेरता रहा
हां पिता ही है वह,,,,,,,
अपना ज़ख्म छिपा वह बेशक हंसता रहा
पत्नी, बच्चों के चेहरे पर शिकन न आए
यह सोच, अकेला सबकुछ सहता रहा
सबके दिल की बात सुनी
पर, अपने मन की कभी न कही
अपने परिवार की खातिर वह
पूरी दुनिया से अकेले लड़ता रहा
हां पिता ही है वह,,,,,,
बच्चे बड़े और उनके खुद के बच्चे हो गए
बेटी पराई हो रम गई है अपने घर में
जो सबके लिए था ,आज उसके लिए कोई न रहा
हर वर्ष पितृ दिवस दुनिया मानता है
पर,हर रोज़ न जाने कितने पिता
बेसहारा,बेघर हो जाता है
हां पिता ही है वह,,,,,
• संपर्क-
• 92010 20813
°°°°°
▪️
डॉ. बलदाऊ राम साहू
[ दुर्ग, छत्तीसगढ़ ]
मुस्काते हैं पापा जी
रोज सुबह ड्यूटी जाते हैं पापा जी
सांझ ढले थक कर आते हैं पापा जी ।
अपनी पीड़ा जाने वे सहते कैसे
हमें देख कर मुस्काते हैं पापा जी ।
सबका बोझ उठा लेते हैं काँधे पर
संकट में न घबराते हैं पापा जी ।
तिनका-तिनका जोड़ बनाया नीड़ सुघड़
श्रम-परिभाषा बन जाते हैं पापा जी ।
मंज़िल चाहे कितना भी दुर्गम हो पर
सहज राह खुद बन जाते हैं पापा जी ।
भेद कभी न करते बेटा-बेटी में
प्यार सभी पर बरसाते हैं पापा जी ।
गर्मी, सर्दी, बारिश हैं सब एक बराबर
हर ऋतु को मित्र बनाते हैं पापा जी ।
सुबह-शाम अम्मा जब देती है भोजन
बड़े चाव से सब खाते हैं पापा जी ।
जब छा जाती मन में एक निराशा-सी
आशा के दीप जलाते हैं पापा जी ।l
• संपर्क-
• 94076 50458
°°°°°
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