कविता आसपास : रंजना द्विवेदी
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• आदमी
– रंजना द्विवेदी
[ रायपुर : छत्तीसगढ़ ]
आदमी, आदमीयत को खा रहा है
और इंसान बनने का
क्या, खूब हुनर दिखा रहा है
स्वार्थ,लिप्सा,धोखा आडम्बर युक्त हो
मानवता का स्वांग रचा रहा है
आदमी, आदमीयत को खा रहा है
अपनो की बेबसी
लाचारी की बैसाखी पहन ,
अपने ही अपनो को रौंदकर
क्रूरता की इमारतें नित्य गढ़ता जा रहा है
आदमी,आदमीयता को खा रहा है
राम का मुखौटा पहन वह
रावणत्व का किरदार निभा रहा है
देखो,आदमी अदमीयत को खा रहा है
दुर्गा,लक्ष्मी,सरस्वती
नारी को संज्ञा दे वह
आज उसके स्त्रीत्व को मिटा रहा है
इंसानियत का खूब
वह हुनर दिखा रहा है
आदमी, आदमीयत को खा रहा है
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