अनामिका चक्रवर्ती की कविताएं
1– शायद और काश
शायद और काश के बीच
एक लंबी सँकरी गली होती है
जिसके शुरू में शायद
और आखिरी मुहाने पर काश होता है
जिसमें न कोई आहट सुनाई देती है
न कदमों के निशान मिलते हैं
जबकि, शायद और काश के बीच की
ये लंबी और सँकरी गली
कभी सूनी नहीं होती
यहाँ से दुनियाँ का गुजरना
जारी रहता है
और इसी बहाने ज़िन्दगी
बसर हो जाती है दुनिया के साथ
2–त्याग पत्र
मैंने अनगिनत त्यागपत्र लिखे
मैं जीवन के आपाधापी में
कई बार दे देना चाहती थी त्याग पत्र
जब भी अधपके भोजन के बीच
चूल्हे की आग खत्म हो जाती
मैं अपनों की बिलखती भूख से डर जाती
चूल्हे की आग पेट से होकर
जब पति के दिमाग की नसो पर लग जाती
उसके लड़खड़ाते कदम
बढ़ने लगते मेरी ओर
और गिर जाते वो अपनी सारी मर्यादाओं से
धान की तरह मैंने कूटा खुद को
कुछ दानों को सोना बनाकर लायी घर जब
हरी चूड़ियाँ और माँग पर नारंगी सिंदूर से
ढाँक लिया अपने अस्मत् का लुटते जाना
मैं दे देना चाहती थी जीवन से त्याग पत्र
मगर अपनी कोख के जनों के सर से
हटा न सकी अपना आँचल
तब कर दिया मैंने
अपने लिखे त्याग पत्रों को अस्वीकार
3- -तुम मिलना
तुम मिलना मुझे
उन रास्तों पर कभी
जहाँ सब के गुजर जाने के बाद
बहुत अकेला हो रास्ता
हम मिलकर बनेगे उसके पथिक।
तुम मिलना
उस स्वप्न में कभी,
जहाँ सिर्फ तुम
सत्य का शिलान्यास कर सको।
तुम मिलना
नदी की उस धारा में कभी,
जहाँ चाँद बनकर मिल सको
जल के कण कण में।
तुम मिलना
देवताओं के उस संसार में कभी,
जहाँ वास हो तुम्हारा
आस्था का विश्वास के रूप में।
तुम मिलना
जीवन के उस अंतिम क्षण में मुझे,
जहाँ मेरी मुक्ति के लिये
बन सको पवित्र शब्दों का उच्चारण ।
4- कर्म
कौन करे फल की चिंता
कौन करे कर्म
इंसान अपने जीवन में
कर्मो के बीज लिये घूमता है
कभी अच्छे बीज बो देता है
बंजर जमीन पर
और जीवन भर उस पर
पानी डालता रहता है हरे रंग की प्रतीक्षा में
कभी बुरे बीज,
उपजाऊ जमीन पर बो देता है
और फिर काटता रहता है
अपना ही बोया जीवन भर
परन्तु उसकी जड़ों तक कभी पहुँच ही नहीं पाता।
5– – कायर
जब आग बढ़ गई चारो तरफ
देश हुआ लहूलुहान हर तरफ
बेटियाँ जन्मी धरा पर जब
बेटो ने देह समझा उनको जब
भूख ने खोली आँखें जब
बंजर जमीन और
बाढ़ में डूबे खेतों खलिहानों पर
अबोध हुए मजदूर जब
हुए पिता मजबूर जब
माँओं ने अपने आँचल बचाए
बचा न पाए आबरू जब ।
ये मामला अपना नहीं
धर के मन में,
चौखट के भीतर खींचे हमने पाँव जब
हुए तब तब कायर तुम
हुए तब तब कायर हम
6– ये ज़िन्दगी भी अजीब बुनावट से बनी होती है !!
ज़िन्दगी में कहानियां खत्म नहीं होती
केवल
दृश्यों के पीछे के पर्दे बदलते हैं
कलाकार तो वही रहते हैं
किरदार बदलते रहते हैं
और बदलते रहते हैं अपने मुखौटे
कभी उनके कान नहीं होते
कभी उनके मुँह नहीं होते
कभी उनकी आँखें नहीं होती
मगर उनकी जीभ
हर बार होती है
पहले से और भी ज्यादा लम्बी
उनके पैर और उनकी चाल
दृश्यों के पीछे
बदलते परदों के साथ बदलती रहती है।
7– 3-तिलांजलि
तुमने प्रेम का
एक विस्तृत आकाश तो बनाया
और उसकी नील धरा पर
स्वंय सकीर्ण होते चले गये
अपने दुखद प्रेम की
बंजर जमीन से
नमी खुरचकर,
मेरे दिल में भावनाओं का
एक मेघ बनाया
और स्वंय पर ही उसे बरसा कर
उसकी तिलांजलि दे दी
प्रेम किसी मरीचिका की तरह
अपने सूखते हुए कंठ के साथ
अपने प्राणों को मुट्ठी में भींचे
जल के सत्य होने के भ्रम को
ह्रदय से लगाकर
तुम्हारे बनाएं विस्तृत आकाश की ओर
टकटकी लगाएं हुए हैं।
अनामिका चक्रवर्ती की कविताएं देश की लोकप्रिय पत्र-पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशित होते रहती है
एक गीत अल्बम’प्रतीति सेव गर्ल चाइल्ड’,’धूप के राज़ महकते हैं’ प्रकाशित हो चुकी है
बॉलीवुड में निर्मित हिंदी फ़िल्म’मिराधा’ के लिए लिखा गीत,जिसे जावेद अली औऱ शहज़ाद अली ने गाया
अनामिका चक्रवर्ती का जन्म जबलपुर में हुआ,वर्तमान में छत्तीसगढ़ के मनेन्द्रगढ़ की रहवासी हैं
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