कविता, स्त्री -सुरेश वाहने
स्त्री
हो सकती है मछली
शोभा बढा़ती
एक्वेरियम में कैद
स्त्री
हो सकती है मछली
नदी के धारा के विरूद्ध
कुशल तैराक
स्त्री
हो सकती है मछली
अथाह सागर के तल पर
पानी को चीरती वीरांगना
स्त्री
हो सकती है मछली
कभी छोटी
कभी बड़ी
लेकिन…
स्त्री नहीं हो सकती
मगरमच्छ
यह असंभव न सही
यह कठिन न सही
पर क्या तब
मगरमच्छ और मछली
दोस्त हो पायेंगे?
यानी
मगरमच्छ का ग्रास बनेंगी
मछली
और मछला भी
यानी मगरमच्छ
हो जायेगा आदमखोर
सबको पता है
आदमखोर को
मार दी जाती है गोली
या फिर
कैद कर ली जाती है
जल्द ही आजीवन
शायद इसीलिए
सब कुछ हो सकने की
संभावनाओ के बावजूद
स्त्री स्त्री होती
और कुछ नहीं ।
【 ●सुरेश वाहने,प्रगतिशील विचार धारा के युवा कवि हैं
●छत्तीसगढ़ आसपास समूह के विशेष संवाददाता हैं
●कुम्हारी प्रेस क्लब,कुम्हारी और छत्तीसगढ़ प्रेस कौंसिल, छत्तीसगढ़ में प्रमुख कार्यकारिणी के पद पर हैं
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