कविता
●कैसे मनायेंगे नया साल
●दिलशाद सैफी
●रायपुर-छत्तीसगढ़
कैसे मनाये इस बार हम
खुशी और उत्साह से
ये “नया साल” इस बार
तो हमें,न भरने वाला दर्द
दे गया जाता हुआ बरस
आत्मसंयम भी सबका
खोने लगा जब सुना
मौत का आँकड़ा
लाखो पार होने लगा
हर तरफ दिलो में
खौफ का माहौल सा है
हर ओर पसरा सन्नाटा है
फिर भी आ रही है
ये आवाज़ सन्नाटे को चिरती
रुदन है शायद..?
अपने अपनो के खोने का
या उनके न होने का
लाशों से भरी गाँव की गली
और शहर की हर बस्ती है
दर्द की चीखे रह-रह के
खामोशी को चिरती है
कानो से होकर ह्रदय को
भेदती हुई कुछ कहती है
नहीं रुकेंगा आया है जो
ये मौत का जलजला है
कोई नहीं रोक सका इसे
न जाने कौन जिम्मेदार है
एक पल में जिंदगीया
रेत की मानिंद हाथो से
फिसलती चली गयी
न रुतबा,पैसा काम आया
न दवा दुआ काम आयी
इंसानों की जिद़गीयो को
कठपुतली बना बना के
आग में झोंक दी गई
एक ओर दुनिया थम गई
बंद हो गये मंदिर, मस्जिद
गिरजाघर, और गुरुद्वारे
अब कोई कैसे उस खुदा को
द्वार- द्वार जा के पुकारे
आँखे नम थी कही फिर भी
दुआओं को हजार हाथ उठे
मगर जैसे नाराज इस बार
खुदा भी है हम सबसे
इसलिए बैठ गया वो भी
मुख हम सबसे मोड़ के
कुदरत ने भी अपना हर
कहर भरपाया, मजबूर
इंसान न संभल पाया
इंसानों का फायदा खूब
खुद इंसान ने उठाया
कभी वायरस के नाम पर
मजहब को निशाना बनाया
दिलो में दर्द थे फिर भी
एक दूजे के लिए थी मुहब्बत
मगर कुछ लोगों को ये
एकता भी न रास आयी
कही मानवता नज़र आयी
तो कही इंसानियत भी
शर्मसार हो गयी
चिकित्सक हमारे भगवान
बन के उभरे तो कुछ
इस रुप में हैवान निकले
हर किसी ने इस मौके का
फायदा उठा डाला
इंसान मर रहे थे और कुछ ने
इंसानियत को मार डाला
कभी कुछ कहा गया तो
कभी कुछ कराया गया
दिये भी जले हर तरफ
थाली भी बजायी गयी
और इसी बहाने नेताओ
की रोटियां सिक गई ।
इन जख्मों की भरपाई
अब हम सब कैसे करेंगे
बीते हुए दर्द के दस्तावेज है
इनमें खुशियो के रंग कैसे भरेंगे..।
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【 ●दिलशाद सैफी की ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ के पाठकों/वीवर्स के लिये नववर्ष पर लिखी कविता प्रस्तुत है ●’कैसे मनायेंगे नया साल’ पढ़ें औऱ अपनी राय से अवगत करायें,-संपादक
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