ग़ज़ल : विनय सागर जायसवाल [बरेली उत्तरप्रदेश]
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इस साले नौ में सबकी ख़ुदा ख़ुश बसर करें
हम सबकी इस दुआ में वो पैदा असर करें
करता हूँ इल्तिजा मैं ख़ुदा से
फ़कत यही
हर ग़मज़दा के ग़म पे करम की नज़र करें
बहशी कहीं न हो न दरिंदा कहीं न हो
सब ख़ैरियत के साथ ही अपना सफ़र करें
जिस कारवां का मीर हूँ मंज़िल उसे मिले
इस दर्जा मेरी सोच को रब्बा ज़बर करें
या रब सहन में आ न सके तीरगी कभी
रौशन मेरे दयार को शम्श-ओ-क़मर करें
शोहरत के आसमान पे क़ायम सदा रहूँ
मज़बूत मौला इतने मेरे बालो- पर करें
साग़र किसी के ग़म का मदावा मैं कर सकूँ
परवरदिगार इतना मुझे मोतबर करें
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