गीत
●मैं हूँ रसगुल्ला
●डॉ.पीसी लाल यादव
मैं हूँ रसगुल्ला भईया ,मैं हूँ रसगुल्ला।
बड़े चाव से खाते सब ,पंडित हो मुल्ला।
मुझे देखकर सबके मुँह में आता पानी।
आसानी से खा जाती, भोभली नानी।
खाने के बाद हरदम , करती मुँह कुल्ला।
मैं हूँ रसगुल्ला भईया , मैं हूँ रसगुल्ला।
बच्चों को प्यारा हूँ मैं , बड़ों का दुलारा।
रस में नहाता रहता, दिन-दिन सारा।।
ढँक कर रखना मुझे, रखना न खुल्ला।
मैं हूँ रसगुल्ला भईया , मैं हूँ रसगुल्ला।
शादी-ब्याह भोज में , रहती मेरी धूम।
गप- गप निगलें सब , यहाँ-वहाँ घूम।।
खा कर मगन बच्चे , हरीश हमीदुल्ला।
मैं हूँ रसगुल्ला भईया ,मैं हूँ रसगुल्ला।
【 छत्तीसगढ़ शासन शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त, अब स्वतंत्र लेखन में सक्रिय डॉ. पीसी लाल यादव,हिंदी व छत्तीसगढ़ी में बाल कविताओं के पांच-पांच संग्रह प्रकाशित. लोक साहित्य पर भी कुछ किताबें प्रकाशित. ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ वेब पोर्टल पर उनकी पहली रचना ससम्मान के साथ प्रकाशित.
‘मैं हूँ रसगुल्ला’ कैसी लगी,राय से अवगत करायें. -संपादक
●लेखक संपर्क-
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