





पहलगाम [कश्मीर] में आतंकी हमले के बाद लिखी विशेष कविता – नूरुस्सबाह खान ‘सबा’

• नूरुस्सबाह खान ‘सबा’
सोच रही हूँ ‘पहलगाम’ पे कविता लिखूँ…
ये लिखते हुए कलम कांपती है
ये लिखने को शब्द नहीं है
किस तरह निभाऊं इंसानियत का फ़र्ज़
उस नवविवाहिता के दिल का दर्द
हाथों से मेहंदी छूटी भी न थी
और मांग उसकी गई उजड़
दिलसे निकलती है आह सर्द
कितने हैवान , नरभक्षी थे वो बेदर्द
सोच रहीं हूँ पहलगाम पे कविता लिखूं
धर्म पूछकर जो गोली चलाते हैं
उनका क्या धर्म है पूछती हूँ
कौनसा धर्म की बात ये करते है
ये तो ख़ुद की ही चलाते हैं
इनका मज़हब न ज़ात है कोई
इनसे बदनाम हमारी क़ौम हुई
आज हम बहुत हैं शर्मिन्दा
इनके गुनाहों से हैं हम परेशां
आज पीस रहा है हर मुसलमां
क्या ये मेरे दीन की है तालीम
नाम से जिसके ये फ़साद मचाते हैं
सोचती हूँ हो जाऊं गोशा नशीं
उठ गया है मेरा इंसां से यक़ी
मैं किसी को भी नज़र न आऊं
और आखिरकार कलम उठाती हूँ
सोचती हूँ मेरे लिखने से
दर्द अपना सभी से बॉटने से
दिल से भारी ये बोझ हटे
मेरी इस छोटी सी कोशिश से
ये अंधेरा किसी तरह तो छठे
हर तरफ़ अम्न के गुंचे खिले
सोई इंसानियत किसी तरह जगे
भाव दिल के सभी कविता में लिखूं
सोचती हूँ पहलगाम पे कविता लिखूं
• संपर्क-
• 99267 72322
chhattisgarhaaspaas
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