कविता

4 years ago
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●ये जीवन की एक पहेली
-श्रीमती अमृता मिश्रा

जितना जानना चाहा इसे
उतनी अंजान हो गई जिंदगी।
जितना इसको सुलझाती हूँ
उतनी और उलझती जाती,
चाहे कितनी गहरी जाऊँ
इस सागर की थाह न पाती,
जब जब इसे थामना चाहा
हाथ नहीं आई अलबेली।
ये जीवन है एक पहेली।।

अपना – पराया गिनते रह गए
हाय- हाय में जीवन बीत गया,
सबने सोचा भर रहा घड़ा है
पर वो तो खाली हो गया,
तिनका – तिनका जोड़ा सबने
लेकिन रह गई खाली हथेली।
ये जीवन है एक पहेली।।

कब जाने किसको जाना होगा
कोई जान न पाया अब तक,
जीवन – रस में डूबा तन- मन
भरमाया रहेगा कब तक,
भूल गया है ये जीव जैसे
जीवन तो है चार दिन की ठिठोली।
ये जीवन है एक पहेली।।

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