





पहलगाम [कश्मीर] में आतंकी हमले के बाद लिखी विशेष कविता – दशरथ सिंह भुवाल सोनपांडर

• हो पहलगाम…! का यही अंजाम…!!
• दशरथ सिंह भुवाल पांडर [ भिलाई, छत्तीसगढ़ ]
बताओ तुम कौन सा धर्म निभाते हो।
जो मासूमों पर गोलियाॅं बरसाते हो।
नापाक इरादों से तुम होकर लैस,
हिन्दोस्ताॅं को बार-बार आजमाते हो।
मानव मन देखो चीत्कार रहा है।
ईश्वर भी तुम्हें धिक्कार रहा है।
तुम्हारी ऐसी घिनौनी हरकतों का,
बस मज़हब ही तो आधार रहा है।
क्यों भाई-चारे के गीत गाते हो।
बताओ तुम कौन……………।।
कोई मज़हब नहीं सिखाता जब।
आपस में यूॅं बैर करना तब।
तुन्हें किसने है सिखाया दरिन्दों,
ख़ूनी दरिया में सैर करना अब।
आतंक की चिंगारी सुलगाते हो।
बताओ तुम कौन……………।।
तुम्हारे सीने में जमकर गोली।
बरसा कर हम भी करें ठिठोली।
चढ़ पाकिस्तान की सर ज़मीं पे,
खुलकर खेलें ख़ून की होली।
क्या ये ही करने को उकसाते हो।
बताओ तुम कौन…………..।।
कोई भी तो नहीं बची मजबूरी है।
उठाना भी सख़्त क़दम ज़रूरी है।
जब तक तुम्हें न मारेंगे आतंकी,
दिवंगतों को श्रद्धांजलि अधूरी है।
देखेंगेअब तुम कैसे जान बचाते हो।
फिर तुम कौन……………….।।
• संपर्क-
• 98271 90993
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