बचपन आसपास

4 years ago
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●हिंद की-युक्तिका
●धीरे से मुस्कुराती है
-डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’

धीरे से मुस्काती है
फिर वो रोती-गाती है

हर सामाँ को फैलाने
पहले ख़ूब जमाती है

टूटी – फूटी भाषा में
कविता रोज़ सुनाती है

पानी बस दिख जाए तो
फौरन भाग नहाती है

मम्मी -पापा के जैसे
हरदम रौब दिखाती है

अपने नाना- नानी को
लाड़ बहुत दिखलाती है

सबको आनंदित करने
दिनभर रंग जमाती है

दादा- दादी के ऊपर
निश्छल प्रेम जताती है

नटखट चंचल है फिर भी
घर में सबको भाती है

●कवि संपर्क-
●7974850694

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