कविता -सुनील जैन,कोलकाता
●फ़ौजी
जिनको देख सहज अपने ही
श्रद्धा से शीश झुक जाता है
और नहीं है कोई
वह तो अपना फ़ौजी है ।
जब हम सर्द रातों में
कंबल ओढ़े सोते हैं
फ़ौजी तब सरहद पर
मुस्तैदी से पहरा देते हैं ।
होली हो या हो दिवाली
या फिर हो कोई अन्य त्योहार
अपनों से दूर रह कर फ़ौजी
हम सबकी रक्षा करता है ।
जब दुश्मन की तिरछी नज़रें
अपने देश पर होती है
जान पर खेलकर अपनी
वो सीमा की रक्षा करता है ।
सियाचिन की ठंडक हो
या फिर हो तपता रेगिस्तान
बेफ़िक्र हो इन मुश्किलों में
डटे रहना ही इनका काम ।
आँधी आए या तूफ़ान
या फिर कहीं आए सैलाब
हर विपदा से हमें बचाने
फ़ौजी रहते हरदम तैयार ।
धन्य है वो माता जिसकी
कोख से इसने जन्म लिया
भारत माँ की रक्षा हेतु
सर्वस्व अपना बलिदान किया ।
देख तिरंगे में लिपटे
अपने बेटे के शव को
पिता शान से कहता है
गर्व है मुझको बेटे तुम पर
देश की ख़ातिर तुमने अपनी
जान करी क़ुर्बान है ।
नमन है ऐसे शूरवीरों को
तुम सब पर है अभिमान हमें
कोटि कोटि तुम सबको
मेरा है प्रणाम 🙏 तुम्हें
कोटि कोटि तुम सबको
मेरा है प्रणाम 🙏 तुम्हें ।
[ ●सुनील जैन ‘कोरा’ में निरंतर लिखते रहते हैं. ●आज़ तक किसी भी पत्रिका में रचना का प्रकाशन नहीं हुआ है. ●’छत्तीसगढ़ आसपास’, हमेशा रचनात्मक लेखन कार्य से जुड़े लेखकों का सम्मान करती है, इसी कड़ी में सुनील जैन की पहली कविता ‘फ़ौजी’ प्रकाशित है. ●कविता कैसी लगी, अवश्य लिखें,ख़ुशी होगी. -संपादक ]
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