आगे पहुना बसंत
●पिरीत के पानी म मया के रंग घोरे
●आगे पहुना बसंत देख रे
-डॉ. पीसी लाल यादव
गंडई, छत्तीसगढ़
पिरीत के पानी म मया के रंग घोरे,
आगे पहुना बसंत देख तो रे ।
मया-पिरीत म जग- जिनगी जोरे,
आगे पहुना बसंत देख तो रे ।।
नवाँ – नवाँ धरती लागय,
नवाँ लागय रे अगास।
पिकियावय सपना नवाँ,
नवाँ जागय रे पियास।।
मया के रस में हिरदे ल चिभोरे।
आगे पहुना बसंत देख तो रे ।।
रंग – रंग के फुलवा संग,
फुलय मन के आसा ।
कोइली कुहुक बोलय ,
मिसरी घोरे भाखा ।।
इरखा भेदभाव के जाला ल टोरे।
आगे पहुना बसंत देख तो रे ।।
उल्होवय डारा – पाना ,
महमहावय जिनगानी।
मऊर पहिरे आमा कुल्के
नीक मऊहा के जवानी।।
लाली परसा सेम्हरा घमाघम हो रे।
आगे पहुना बसंत देख तो रे ।।
सरा….ररा….सरा….ररा
छूटे पिरीत पिचकारी।
रंग – गुलाल के ओखी,
फुलय मया के फुलवारी।।
मया के बंधना ल कोनो झन टोरे।
आगे पहुना बसंत देख तो रे ।।
[ रचनात्मक लेखन में निरंतर सक्रिय डॉ. पीसी लाल यादव,’छत्तीसगढ़ आसपास’ पत्रिका के शुभचिन्तकों में से एक हैं. ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ संपादकीय मंडल सदैव आपका आभारी रहेगा. -संपादक ]
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