कविता
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बसन्त पंचमी
-प्रिया देवांगन ‘प्रियू’
आता है जब पंचमी, पूजा करते लोग।
हाथ जोड़ विनती करे, और लगाते भोग।।
हरी भरी धरती दिखे, हरियाली चहुँओर।
कोयल कूके बाग में, होते जग में भोर।।
करते पूजा शारदा, और झुकाते माथ।
जाते हैं सब द्वार पर, मिलजुल सबके साथ।।
मन को सबके मोहते, पुष्पों की मुस्कान।
आता दौर बसंत का, सुंदर लगे बगान।।
विद्या की है दायनी, भरती जग भण्डार।
श्वेत कमल में बैठती, देती खुशी अपार।।
श्वेत वस्त्र धारण करें, पुस्तक पकड़े हाथ।
वीणा की झंकार से, सभी झुकाते माथ।।
[ ●पंडरिया, जिला-कबीरधाम, छत्तीसगढ़ निवासी प्रिया देवांगन ‘प्रियू’ उभरती हुई कवियित्री है. ●’छत्तीसगढ़ आसपास’, उभरते हुए रचनाकार को स-सम्मान के साथ प्रकाशित करती है. ●इसी कड़ी में ‘प्रियू’ की इस रचना के प्रति अपनी राय अवश्य दें. -संपादक ]
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