डॉ. मीता अग्रवाल ‘मधुर’ की कविताएं
●इच्छा
अनंत आकाश की
ऊचाईयां
हिरणी की तरह कुलाचे भरती
इच्छाएं ।
भटकती मृगमरीचिका
थक-हार बैठती हैं
सोचते सोचते
विशाल प्रांगन में
विचरती ढूढ़ती उत्तर
बनाती है योजना।
गलबाहें डाल
अठखेलियां करती
झूमती गाती साकार हो
पार करती है सफर
जीवंत होती ।
अभिलाषा का ज्वार
मति गति विचार
श्रृंखला की आबद्ध
इकाई है।
बुद्धि विकास वैभव विलास
संभावना विभावना
विजय पराजय
समाहित
खुला द्वार
सिंधु सीअथाह गहरी
लहरों के मानिंद
जीवटता
जीवन का सौंदर्य
इच्छा।
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●धूल
विकास के नव अंजोर में
बढ़ते चरण शिखर
पर्वत सा साहस,
गदराये सपनो को पूरा करते
कभी थके नही।
ऊँचाई को छूना पाना
अब आदत सी बन गई ,
निढ़ाल होती देह,
अस्त होते सूरज की परछाई सी,
पस्त हो, सुस्ता रही धूप की तरह,
पसरी मृगमरीचिका को निहारती
विन्यस्त हो जुटा लेती
उगते सूरज सा साहस,
जमने नही देती धूल
इरादों पर।
खिड़कियों से छनती
रजकणो की ताजा तरीन किरणें
फ़र्श पर पड़ती,
मापने का क्रम करती है, आँखे ,
भापती है, धूल कणों की चतुरता,
अनुभवजन्य, कर्तव्य परायण
प्रकाश के आगोश मे
आसमां से नीचे उतरती
पेड़ डाली ,खप्पर ,खिड़की
जाने कितने
प्राकृतिक -भौतिक संसाधनो से ,
पार होती मिलती है
वास्तविक अपने स्वरूप
धरती प्रियतमा से प्रियतम धूल।
माथे पे तिलक माटी का
मातृभूमि हित
वीर सैनिक मार अरि को
धूल चटाते,
करते है जयघोष
राष्ट्र सेवा ।
[ ●डॉ. मीता अग्रवाल ‘मधुर’,रायपुर,छत्तीसगढ़ से हैं. ●आज़ उनकी दो कविता ‘इच्छा’ औऱ ‘धूल’ प्रकाशित कर रहे हैं, कैसी लगी,अवश्य बतायें. -संपादक ]
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