





महुआई गंध
4 years ago
185
0
■पगडंडियों के आर-पार,
■बिखरे पलाश फूल.
-डॉ. पीसी लाल यादव
[ गंडई-छत्तीसगढ़ ]
पगडंडियों के आर-पार,
बिखरे पलाश फूल।
जैसे सूखी नदी के –
हों मखमली कूल।।
महआई गंध लिये,
हवा अपनी अँजुरी में
गीत बन समा गयी,
कान्हा की बाँसुरी में।।
बाँसुरी की धुन सुन,
नाच उठी फागुनी धूल।
सेमर की सूर्ख कलियाँ,
कुछ ऐसी शोभा देतीं।
जैसे वर्षों बाद आई हो,
अपने बाप के घर बेटी।।
चांदी के गहने लिए,
खड़ा बाप सा बबूल।
मौसम की छाती में किरणें,
मीठी -मीठी छुरी घोंपती।
लहरों के मैले दर्पण को,
हाथों से अपने पोंछती।।
कहती फूलों से क्यों,
हमको गए हमको भूल ?
लौट आई फिर से यहाँ ,
जवानी अमराई की।
उनींदी आखों में लिए
मादकता तरुणाई की।।
गमक उठे अमुवा तले ,
धूप दीप और गुंगुल।।
●कवि संपर्क-
●94241 13122
●●● ●●● ●●●
chhattisgarhaaspaas
Previous Post राजकोट लाइव रेडियो
विज्ञापन (Advertisement)



ब्रेकिंग न्यूज़
‹›
कविता
‹›
कहानी
‹›
लेख
‹›
राजनीति न्यूज़
‹›