रचना आसपास
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■अप्प दीपो भव
-अरुण कुमार निगम
[ दुर्ग-छत्तीसगढ़ ]
मशीखत के जहाँ जेवर वहाँ तेवर नहीं होते
जमीं से जो जुड़े होते हैं उनके पर नहीं होते।
जिन्हें शोहरत मिली वो व्यस्त हैं खुद को जताने में
वरगना आपकी नजरों में हम जोकर नहीं होते।
अहम् ने इल्म पर कब्जा किया तो कौन पूछेगा
हरिक दिन एक जैसे तो कभी मंजर नहीं होते।
बसेरा हो जहाँ भी प्यार की दौलत लुटा डालो
मकां कहती जिसे दुनिया वो ढाँचे घर नहीं होते।
“अरुण” संदेश देता है जगत को “अप्प दीपो भव”
उजाले दिल में होते हैं कभी बाहर नहीं होते।
[ ●मशिखत-बड़प्पन ●पर-पंख ●इल्म-ज्ञान ●अरुण-सूर्य ●अप्प दीपो भव-अपना दीपक आप बनो ]
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