कविता
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धरा पर उतरो महेश्वर,
औऱ जगत का दुःख हरो,
शत्रु का विनाश करने,
रुद्र रूप तुम धरो.
●तारकनाथ चौधुरी
धरा पर उतरो महेश्वर
और जगत का दुःख हरो,
शत्रु का विनाश करने
रूद्र रुप तुम धरो।
आशुतोष कहलाते हो तुम
प्रश्न कठिन प्रभु सरल करो,
जीवन-अमृत देने के हित
पुनः कंठ तुम गरल धरो।
प्रयत्न भगीरथ व्यर्थ न जाये
उनकी जो सेवा में रत हैं
अपना सुख परहित में त्याग कर
मृत्यु से लड़ने उद्यत हैं।
अपने प्रताप से ही पाये शिव
तुमने शताधिक नाम
फिर क्यूँ जग-पीडा़ से विमुख हो
निज पद करते बदनाम।
धरा पर उतरो महेश्वर!धरा पर उतरो!
[ ●चरोदा-भिलाई, निवासी तारकनाथ चौधुरी निरन्तर लेखन में सक्रिय हैं. ●’छत्तीसगढ़ आसपास’,के शुभचिन्तक चौधुरी जी की एक ओर कविता पाठकों के लिए प्रस्तुत है, अपनी राय से अवगत कराएं. -संपादक.]
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