ग़ज़ल, विनीता सिंह चौहान.
अब क़लम क्या नया लिखे,
अल्फाजों में वही दर्द दिखे.
-विनीता सिंह चौहान
[ इंदौर-मध्यप्रदेश ]
अब कलम क्या नया लिखे।
अल्फाजों में वही दर्द दिखे,
धूल पट गई दर अो दीवार पर,
पुरानी यादों का बसेरा दिखे।
आंखों में यादें ज़ज्ब हो गई ,
हर तरफ दर्द का पहरा दिखे
घाव दिए थे जो बरसों पहले ,
निशान आज भी गहरा दिखे।
था कभी गुलिस्तान जहां हमारा,
अब बस दश्त ओ सहरा दिखे।
हम तो हैं आज भी वही खड़े ,
वक्त यादों के साथ ठहरा दिखे।
आंखों को बेवफा अक्श दिखे।
चारो ओर सन्नाटा पसरा दिखे।
[ ●भिलाई की विनीता सिंह चौहान,अब शादी के बाद इंदौर मध्यप्रदेश में है. ●विनीता की दो पुस्तक ‘आज़ फ़िर उठी कलम’औऱ ‘मेरी बेटियां’,प्रकाशित हुई है. ●उनकी प्रतिनिधित्व करती रचनायें-रुक गया वर्तमान, अनाथ बच्चे के भाव,बिटिया बिन अम्माँ की दिवाली. ●देश के कई समाचार पत्र-पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन में भी सक्रिय विनीता सिंह चौहान साहित्यिक मंचों से भी काव्यपाठ कर रही हैं. ●’छत्तीसगढ़ आसपास’,वेब पोर्टल में विनीता की पहली रचना ‘ग़ज़ल’ प्रकाशित है,कैसी लगी अवश्य लिखें. -संपादक. ]
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