छत्तीसगढ़ी गीत, डॉ. पीसी लाल यादव.
मया-मउहा माह के फागुन म
पिरीत-परसा दाह के फ़ागुन म
होरी के रंग म भिंजे अंग-अंग,
मन-चिरइया चाह के फ़ागुन म.
-डॉ. पीसी लाल यादव
[ गंडई-छत्तीसगढ़ ]
मया – मउहा माहके फागुन म ,
पिरीत-परसा दाहके फागुन म।
होरी के रंग म भिंजे अंग-अंग,
मन-चिरईया चाहके फागुन म।।
गोरी के गाल के चोरा के लाली,
परसा फूल परोसी मारे उदाली।
मांग उधारी गोरी के गुरतुर बानी,
कोइली कुहुक फोकट मारे फुटानी।
घाट – घठौंदा खोंचे करौंदा,
पवन मेड़ो नाहके फागुन म।।
ठूँड़गा सेम्हरा सुग्घर फूल फुलोवय,
जंगल – पहर धरती लुगरा दुनोवय।
सपना उल्होवय उल्हवा पाना कस,
संगी-सुरता छतिया बेधे बाना कस।
फूल ते फूल डोंहड़ी चुहके भँवरा,
मन – बैरागी बाँहके फागुन म ।।
बिहाव बर नान्हे टूरा ह रिसाय हे ,
गवन के गोठ सुन रमौतिन लजाय हे।
चोर ले मोटरा उतियइल डोकरी,
चइत लगती कुँड़ा लगिन बलाय हे।।
आरो न सोर सन्देस लगिनहा के,
परान – पखेरू लाहके फागुन म।।
कउहा-मउहा फूल एकउहा झउरगे,
आमा – जाम पहिरे मुकुट मउर के।
रंग – गुलाल घलो नइ छुटे पउर के,
फागुन पहुना फेर आगे हे बहुर के।।
मया के बंधना पिरीत के रुंधना,
मन – मतंग डाहँके फागुन म।।
[ ●छत्तीसगढ़ी औऱ हिंदी के सशक्त कवि डॉ. पीसी लाल यादव ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ के शुभचिन्तक हैं. ●डॉ. यादव जी ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ के लिए नियमित लिख रहे हैं. ●फ़ागुन माह औऱ होली पर ये रचना कैसी लगी, लिखें. – संपादक ]
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